George Pancham Ki Naak

NCERT Solutions for Class 10 Hindi
कृतिका
Chapter 2
जार्ज पंचम की नाक
George Pancham Ki Naak
कमलेश्वर
पाठ्य-पुस्तक
प्रश्न-अभ्यास

Kritika-II is the supplementary reader for Class 10th students of Hindi Course A. Five compositions have been compiled. The five compositions are specific in their story, craft and presentation. Prashn Abhyaas are given at the end of each chapter which will check your awareness regarding the chapter. NCERT Solutions for Class 10th Kritika-II are given on this page. If you are having any type of problem while solving any question then you can take the help of this page. We have tried to cover the answer to each question in a detailed manner. You only need to click on the desired chapter name and get started.





प्रश्न 1. सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है।

उत्तर:- सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है, वह उनकी गुलाम और औपनिवेशिक मानसिकता को प्रकट करती है। सरकारी लोग उस जॉर्ज पंचम के नाम से चिंतित है जिसने न जाने कितने ही कहर ढहाए। उसके अत्याचारों को याद न करके उसके सम्मान में जुट जाते हैं। सरकारी तंत्र अपनी अयोग्यता,अदूरदर्शिता, मूर्खता और चाटुकारिता को दर्शाता हैअर्थात वे अभी भी अप्रत्यक्ष गुलामी की भावना से स्वयं को मुक्त नहीं करा पाए हैं।

प्रश्न 2. रानी एलिजाबेथ के दरज़ी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे?

उत्तर:- रानी का दर्जी रानी के लिए नई पोशाकों को बनाने के लिए परेशान था। रानी एलिजाबेथ के दरज़ी को भारत, पाकिस्तान और नेपाल के पहनावे-ओढ़ावे या मौसम की कोई जानकारी नहीं थी। दरजी यह सोच कर परेशान हो रहा था कि भारत-पाकिस्तान और नेपाल यात्रा के समय रानी किस अवसर पर क्या पहनेंगी। रानी की पोशाक उनके व्यक्तित्व से मेल खानी आवश्यक थी। रंग चयन में खासी सावधानी बरतना आवश्यक था। रानी इस यात्रा पर अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रही थी। अर्थात उनके कपड़ों का उनकी मर्यादा के अनुकूल होना जरूरी था। रानी की वेशभूषा तैयार करने में यदि उससे कोई चूक हो जाती, तो उसे रानी के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है।

प्रश्न 3. ‘और देखते ही देखते नयी दिल्ली का काया पलट होने लगा’ – नयी दिल्ली के काया पलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे?

उत्तर:- इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ केआने की संकेत पाते ही नई दिल्ली की काया पलट होने लगा। और इसके लिए हर स्तर पर अनेक प्रयत्न किये गए होंगे, जैसे
१) पूरे दिल्ली शहर में साफ सफाई के लिए विशेष योजनाएँ तैयार की गई होगी।
२) इमारतों पर जमी धुल-मिट्टी सफ़ाई तथा रंग-रोगन कर के उन्हें सजाया-सँवारा गया होगा।
३) रानी के आवागमन के रास्तों पर प्रकाश की व्यवस्था और सजावट की गयी होगी।
४) सड़कों के नाम की पट्टी लगाकर रेलिंग और क्रासिंग को रंगीन किया गया होगा और टूटी सड़कों की मरम्मत की गयी होगी।
५) स्थान-स्थान पर फ़ौजी टुकड़ियाँ तैनात की गयी होगी।
६) जगह-जगह स्वागत द्वार बनाया गया होगा। ७) मार्ग पर दोनों देश के ध्वज लहराए गए होंगे।
८) राजपथ के दोनों ओर फूल-पौधे लगाए गए होंगे।

प्रश्न 4.1 आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है –
इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?

उत्तर:- आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है, वह अनावश्यक है। इस तरह की पत्रकारिता राष्ट्र हित के अनुकूल नहीं हैं क्योंकि यह सस्ती पत्रकारिता युवा पीढ़ी को भ्रमित कर रही हैं। पत्रकारिता लोकतंत्र का वह मुख्य स्तम्भ है, जो समाज के अधिकारों के प्रहरी के रूप में समाज तथा राष्ट्र दोनों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है,इसका सशक्त होना आवश्यक है।

प्रश्न 4.2 आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है –
इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है?

उत्तर:- इस प्रकार की पत्रकारिता पाठकों को दिग्भ्रमित करती है और विशेषकर युवा पीढ़ी पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। इस तरह की पत्रकारिता नौजवान पीढ़ी को नकल करने की ही शिक्षा दे रही है। युवा पीढ़ी उसे फैशन के रूप में अपना कर अपने सामाजिक व्यवहार और लक्ष्य को भूल व्यर्थ की सजावट में समय और धन खर्च करने लगती है। राष्ट्र को सही दिशा देने के लिए यह आवश्यक है कि पत्रकारिता का प्रत्येक विषय समस्त नागरिकों के हित में हो न कि लोगों को पथ भ्रष्ट करने के लिए हो।

प्रश्न 5. जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुन: लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए?

उत्तर:- मूर्तिकार के द्वारा किए गए यत्न निम्नलिखित हैं –
(क) मूर्ति के पत्थर के प्रकार आदि का पता न चलने पर व्यक्तिगत रूप से नाक लगाने की ज़िम्मेदारी लेते हुए देश भर के पहाड़ों और पत्थर की खानों का तूफ़ानी दौरा किया।
(ख) उसने देश में लगे हर छोटे-बड़े नेताओं की मूर्ति की नाक से पंचम की लाट की नाक का मिलान किया ताकि उस मूर्ति से नाक निकालकर पंचम की लाट पर नाक लगाई जा सके परन्तु; दुर्भाग्य से सभी की नाक जार्ज पंचम की नाक से बड़ी निकली,शहीद हुए बहादुर बच्चों की नाकें भी नापी गई।
(ग) आखिर जब उसे नाक नहीं मिली तो हताश मूर्तिकार की सलाह पर चिन्तित एवम् आतंकित हुक्मरानों ने जिंदा इनसान की नाक लगवाने का परामर्श दिया और प्रयत्न भी किया।

प्रश्न 6. प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। उदाहरण के लिए ‘फाईलें सब कुछ हजम कर चुकी हैं।’ ‘सब हुक्कामों ने एक दूसरे की तरफ़ताका।’ पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए।

उत्तर:- मौजूदा व्यवस्था पर चोट करने वाले कुछ कथन निम्नलिखित हैं
१) शंख इंग्लैण्ड में बज रहा था,गूंज हिन्दुस्तान में आ रही थी।
२) गश्त लगती रही और लाट की नाक चली गई।
३) सड़कें जवान हो गईं,बुढ़ापे की धूल साफ़ हो गई।
४) रानी आए और नाक न हो, तो हमारी भी नाक नहीं रह जाएगी।
५) एक ख़ास कमेटी बनाई गई और उसके जिम्मे यह काम दिया गया।
६) चालीस करोड़ में से कोई एक जिंदा नाक काटकर लगा दी जाए।

प्रश्न 7. नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है? लिखिए।

उत्तर:- नाक, इज्जत-प्रतिष्ठा, मान-मर्यादा और सम्मान का प्रतीक है,शायद यही कारण है कि इससे संबंधित कई मुहावरे प्रचलित हैं जैसे – नाक कटना, नाक रखना, नाक का सवाल, नाक रगड़ना आदि। इस पाठ में नाक मान सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात लेखक ने व्यंग्य के माध्यम से विभिन्न बातों द्वारा व्यक्त की हैं। रानी एलिज़ाबेथ अपने पति के साथ भारत दौरे पर आ रही थीं। ऐसे मौके में जॉर्ज पंचम की नाक का न होना उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने जैसा था। सरकारी तंत्र विदेशियों की नाक को ऊँचा करने के कार्य को अपनी नाक का सवाल बना लेते हैं। यहाँ तक की जॉर्ज पंचम की नाक का सम्मान व्यक्त करने के लिए वे भारत के महान नेताओं एवम साहसी बालकों के सम्मान को भी ताक पर रख देते हैं।इस पाठ में सरकारी तंत्र की गुलाम मानसिकता तथा बेईमानी की स्पष्ट झलक दिखाई देती है।


प्रश्न 8. जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है।

उत्तर:- ज़ार्ज पंचम इंग्लैण्ड का राजा था जिसने भारतीय जनता और स्वतंत्रता-संग्राम सेनानियों पर बहुत जुल्म ढाए थे। उसकी लाट की नाक गायब हो गई थी। बहुत ढूँढ़ने पर भी किसी भारतीय महापुरूष या स्वतंत्रता सेनानी की नाक उस पर फिट न बैठ सकी। यहाँ लेखक ने भारतीय समाज के महान नेताओं व साहसी बालकों के प्रति अपना प्रेम एवम श्रद्धा गर्व से प्रकट की है। देशभक्त भारतीयों ने देश की आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया,चाहे वह बूढ़ा हो या जवान हो या फिर बच्चा ही क्यों न हो, उनकी मान-मर्यादा और इज्ज़त के समक्ष जार्ज पंचम या उसके समतुल्य किसी अन्य की कोई इज्ज़त नहीं। इसलिए जॉर्ज पंचम की नाक से हमारे भारतीय देशभक्तों की नाक सहस्त्रों गुणा ऊँची है।

प्रश्न 9. अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया?

उत्तर:- अख़बारों ने यह ख़बर छापी गई कि – ‘ नाक का मसला हल हो गया है। राजपथ पर इंडिया गेट के पास जॉर्ज पंचम की लाट पर नाक लग गई है। ‘इस खबर को कोई विशेष स्थान नहीं दिया गया।

प्रश्न 10. “नयी दिल्ली में सब था… सिर्फ नाक नहीं थी।” इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?

उत्तर:- इस कथन के माध्यम से लेखक अतिथी देवो भव की भावना के कारण ब्रिटिश सरकार का भारत में सम्मान को तो प्रदर्शित करता है लेकिन उस बीमार,भ्रष्ट सरकार पर व्यंग्य कसता है,जो सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए कार्य करती है।वह एलिजाबेथ एवम् प्रिंस फ़िलिप के आने पर चालीस करोड़ भारतीयों में से किसी एक की ज़िन्दा नाक काटकर ज़ार्ज पंचम की लाट में लगा देने की अपमान जनक बात सोचती और करती है,पूर्ण रूप से गलत है यदि सच में दिल्ली के पास नाक होती तो इतना बखेड़ा खड़ा न करके सीधे जार्ज पंचम के लाट को ही हटवा दिया जाता।

प्रश्न 11. जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे?

उत्तर:- अख़बार उस दिन चुप थे। ब्रिटिश सरकार को दिखाने के लिए किसी जिंदा इनसान की नाक जॉर्ज पंचम की लाट की नाक पर लगाना किसी को पसंद नहीं आया। यदि वे सच छाप देते तो पूरी दुनिया क्या कहती। दुनिया के लोग जब जानते कि आज़ादी के बाद भी दिल्ली में बैठे हुक्मरान आज भी अंग्रेजों के आगे अपनी दुम हिलाते हैं।प्राय:अखबारों पर सरकारी दबाव भी रहता है।


जॉर्ज पंचम की नाक

पाठ का सार

एक बार इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ पाकिस्तान, नेपाल और भारत के दौरे के लिए रवाना होने वाली थीं। इंग्लैंड के समाचार-पत्रों में रानी के नौकरों, बावर्चियों, अंगरक्षकों से संबंधित छपी विस्तृत जानकारियाँ भारत के समाचार-पत्रों में छपने लगीं। रानी की यात्रा को लेकर उनके दर्जी की चिंता की खबर भी पढ़ी गई। रानी का आगमन दिल्ली में होना था, इसलिए सड़वेंफ सुधरने लगीं। इमारतें सजने लगीं। नाक ऊँची रखने के लिए सभी तैयारियाँ जोर-शोर पर थीं कि कड़ी सुरक्षा के बाद भी इंडिया गेट के सामने लगी जार्ज पंचम की मूर्ति की नाक गायब हो गई। एक विदेशी के आगमन पर एक विदेशी की नाक के न होने से भारत की नाक नहीं बच सकती, इसलिए देश के जिम्मेदार नेताओं और अधिकारियों ने सभा की और मूर्ति पर नाक लगाने का निश्चय किया। एक गरीब मूर्तिकार ने अपनी गरीबी दूर करने के लिए हिम्मत करके अवसर का लाभ उठाना चाहा। उसने सभा में पुरातत्व विभाग की पफाइलों से जार्ज पंचम की मूर्ति के जैसा पत्थर ढुंढ़वाया, परंतु पफाइलों में कुछ भी जानकारी नहीं मिली। फिर सभा की गई। उसमें उसने देश के पहाड़ों और खानों के पत पत्थर को मिलाकर देखने का निश्चय किया। नेताओं और अधिकारियों को हिम्मत मिली। परंतु मूर्तिकार को अपने पूरे प्रयास के बाद वैसा पत्थर भी नहीं मिला। इस बार मूर्तिकार ने सभा को गुप्त बनाते हुए सुझाव दिया कि अखबारों को दूर रखा जाए। देश के महापुरुषों की मूर्तियों की नाकों के नाप लिए जाएँ और ठीक आने पर उतारकर वे लगा दी जाएँ।


घबराहट के बाद भी सदस्यों सहित सभापति ने मूर्तिकार को अनुमति दे ही दी, परंतु दुर्भाग्य से पूरे देश के महापुरुषों की मूर्तियों के साथ सन 1942 के आंदोलन में बिहार सचिवालय के सामने शहीद हुए बच्चों की मूर्तियों की नाकें भी जार्ज की नाक से बड़ी निकलीं। रानी के आगमन का समय करीब था। फिर की गई बैठक में अधिकारियों और नेताओं की हड़बड़ाहट देखकर मूर्तिकार ने देश की नाक बचाने के लिए चालीस करोड़ की आबादी वाले भारत के एक नागरिक की जीवित नाक लगाने का रास्ता सुझाया। अपने प्रस्ताव पर सभा में सन्नाटा छाता देखकर मूर्तिकार ने खुद आगे बढ़कर जब काम की जिम्मेदारी ले ली, तो उसे फिर इस कार्य की अनुमति मिल गई। अब जार्ज पंचम की मूर्ति साफ़ की गई। उस पर रंग किया गया। अखबार वालों को खबर दी गई कि जार्ज की मूर्ति की नाक की समस्या का हल निकल आया है। नाक लगने वाली है। अपनी ही योजना पर परेशान मूर्तिकार ने एक दिन कमेटी वालों से जीवित नाक लाने और लगाने में मदद माँगी। कमेटी वालों ने मूर्ति के आसपास बने तालाब की सफाई करके ताजा पानी भरा, और अगले दिन मूर्तिकार ने मूर्ति पर नाक पिफट कर दी। लोगों ने जार्ज पंचम की मूर्ति पर जिंदा जैसी दिखाई देने वाली नाक देखी। मूर्तिकार के साथ सभी खुश थे कि समय से पहले ही देश की नाक बचाकर, नाक उपर रखने का इंतशाम हो गया। अखबार वालों ने तो उस दिन किसी के अभिनंदन, स्वागत समारोह या उद्घाटन की न तो खबर छापी और न पफोटो। केवल मनुष्य की तरह दिखाई देने वाली, जार्ज पंचम को लगी नाक की खबर छापकर नाक रहित हुए भारत की असलियत को उद्घाटित किया।