Class-X

Sana Sana Hath Jodi Summary And Solutions

NCERT Solutions for Class 10 Hindi

कृतिका भाग – II 

Chapter 3

साना-साना हाथ जोड़ि

पाठ का सार




 


लेखिका सिक्किम की राजधानी गैंगटाक घूमने गई थी। रात में ढलान पर सितारों की जगमगाती झालर ने उसे इतना सम्मोहित किया कि वह उसी दिन सुबह एक नेपाली युवती से सीखी प्रार्थना- ‘मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो’, करने लगी। अगले दिन मौसम सापाफ न होने के कारण लेखिका कंचनजंघा की चोटी तो नहीं देख सकी, परंतु ढेरों खिले पफूल देखकर खुश हो गई। वह उसी दिन गैंगटाक से 149 किलोमीटर दूर यूमथांग देखने अपनी सहयात्री मणि और गाइड जितेन नार्गे के साथ रवाना हुई। वहाँ के लोग बौद्ध धर्म को बहुत मानते थे। रास्ते में उन्होंने बौद्ध अनुयायियों की लगाई सपोफद और रंगीन झंडियाँ देखीं। ‘कवी-लोंग स्टाक, नामक स्थान पर हिंदी फिल्म ‘गाइड’ की शूटिंग का स्थान देखा। वहीं लेपचा और भुटिया जातियों का शांति वार्ता स्थान भी देखा। एक कुटिया में पापों को धोने वाला प्रेयर व्हील देखा। उफँचाई पर चढ़ते हुए धीरे-धीरे लेखिका को स्थानीय लोगों का दिखना बंद हो गया। नीचे घर ताश के पत्तों जैसे छोटे-छोटे दिखने लगे। हिमालय की विशालता दिखने लगी। रास्ते सँकरे और घुमावदार होने लगे। गहरी खाइयाँ बादलों से भरी थीं। हरियाली के बीच कहीं-कहीं खिले फूल भी थे। हिमालय की सुंदरता ने यात्रियों को प्रभावित किया और वे प्रार्थना के लोक-गीत गाने लगे। चाँदी की तरह चमकती तिस्ता नदी लगातार सिलीगुड़ी से साथ-साथ चल रही थी। प्रसन्न लेखिका ने भी हिमालय को सलामी देनी चाही थी कि जीप चलती हुई सेवन सिस्टर्स फॉल के सामने आ खड़ी हुई। झरने की कल-कल और ठंडक ने लेखिका के मन की सारी दुर्भावनाओं को खत्म कर दिया। सत्य और सौंदर्य की अनुभूति से वह भावुक हो उठी। आगे बढ़ने पर बादलों की लुका-छिपी के बीच हिमालय की शोभा हरे, पीले और कहीं पथरीले रूप में फिर दिखाई देने लगी। पल-पल बदलती और सुंदर होती प्रकृति के विराट रूप के आगे लेखिका को अपना अस्तित्व तिनके जैसा लगा। अज्ञान दूर हुआ। आत्मज्ञान होते ही एक बार फिर उसने प्रार्थना ‘मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो’, दोहराई।

लेखिका ने बच्चों को पीठ पर बाँधेए सँकरे रास्तों को फूलदाल से चैड़ा करती पहाड़ी स्त्रिायों को देखा। चाय बागानों में काम करने वाली स्त्रिायों को भी देखा। 7-8 साल के ऐसे बच्चों को देखाए जो तीन साढ़े तीन किलोमीटर की चढ़ाई पैदल चढ़कर पढ़ने के लिए विद्यालय जाते हैं। जंगल से लकड़ी काटकर लाने, पानी भरने और मवेशियों को चराने के काम में स्त्रिायों के साथ जुड़े बच्चों को देखकर लेखिका को पहाड़ी जीवन की कठिनाइयों का अहसास हुआ। उसे लगा कि मैदानों की तुलना में पहाड़ों में भूख, मौत, दीनता और जिंदा रहने को लेकर संघर्ष अधिक है। रास्ते में कई जगह सावधानीपूर्वक चलने के निर्देश लिखे थे।


यूमथांग जाते हुए लेखिका को रात लायुग की शांत बस्ती में बितानी पड़ी। वहाँ उसने यह विचार किया कि मनुष्य ने प्रकृति की लय, ताल और गति को बिगाड़कर बहुत बड़ा अपराध किया है। बर्फ देखने की इच्छा लायंग में भी पूरी न होने के कारण 500 फीट उँचाई पर ‘कटाओं यानी भारत का स्विट्ज़रलैंड’ जाने का निश्चय किया गया। कटाओ का पूरा रास्ता अधिक खतरनाक और धुंध से भरा था। वहाँ पहुँचने पर ताज़ा बर्फ से पूरे ढके पहाड़ चाँदी से चमक रहे थे। घुटनों तक बर्फ जमीन पर बिछी थी और गिर भी रही थी। यात्री आनंद उठाने लगे। लेखिका की मित्रा ने कटाओ को स्विट्ज़रलैंड से भी अधिक उँचाई पर बताया। लेखिका ने भी उस संदर दृश्य को हृदय में समो लिया। वह आध्यात्मिकता से जुड़ गई। वह विचार करने लगी कि शायद ऐसी ही सुंदरता से प्रेरित होकर ऋषियों ने वेदों की रचना की होगी और जीवन के सत्यों को खोजा होगा। मणि ने हिम शिखरों को एशिया के जल स्तंभ बताया। कड़कड़ाती ठंड में पहरा देते फौजियों की कर्तव्यनिष्ठा ने लेखिका को भावुक बना दिया। कटाओं से यूमथांग की ओर जाते हुए प्रियुता और रूडोडेंड्रो ने फूलों की घाटी को भी देखा। यूमथांग कटाओ जैसा सुंदर नहीं था। वहाँ एक सिक्किमी स्त्री ने अपना परिचय जब इंडियन कहकर दिया, तो लेखिका खुश हो गई। रास्ते में गाइड नार्गे ने चाँदनी रात में भौंकने वाले वुफत्ते दिखाए। गुरुनानक के पदचिह्नों वाला एक ऐसा पत्थर दिखाया, जहाँ कभी उनकी थाली से चावल छिटककर बाहर गिर गए थे। खेदुम नाम का एक किलोमीटर का ऐसा क्षेत्र भी दिखाया, जहाँ देवी-देवताओं का निवास माना जाता है। नार्गे ने पहाड़ियों के पहाड़ों, नदियों, झरनों और वादियों के प्रति पूज्य भाव की भी जानकारी दी। कप्तान शेखर दत्ता के सुझाव पर गैंगटाक के पर्यटक स्थल बनने और नए रास्तों के साथ नए स्थानों को खोजने के प्रयासों की भी जानकारी दी।

NCERT Solutions Kritika Chapter – 3

Sana Sana Hath Jodi

प्रश्न-उत्तर 


प्रश्न 1 – झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?

उत्तर:- रात्रि के समय आसमान ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सारे तारे नीचे धरती पर टिमटिमा रहे हों। दूर ढलान लेती तराई पर सितारों के गुच्छे रोशनियों की एक झालर-सी बना रहे थे। रात के अन्धकार में सितारों से झिलमिलाता गंतोक लेखिका को जादुई एहसास करा रहा था। उसे यह जादू ऐसा सम्मोहित कर रहा था कि मानो उसकाअस्तित्व स्थगित सा हो गया हो, सब कुछ अर्थहीन सा था। उसकी चेतना शून्यता को प्राप्त कर रही थी। वह सुख की अतींद्रियता में डूबी हुई उस जादुई उजाले में नहा रही थी जो उसे आत्मिक सुख प्रदान कर रही थी।

प्रश्न 2 – गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ क्यों कहा गया?

उत्तर:- गंतोक को सुंदर बनाने के लिए वहाँ के निवासियों ने विपरीत परिस्थितियों में अत्यधिक श्रम किया है। पहाड़ी क्षेत्र के कारण पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाना पड़ता है। पहाड़ो पर बैठकर औरतें पत्थर तोड़ती हैं। उनके हाथों में कुदाल व हथौड़े होते हैं। कईयों की पीठ पर बँधी टोकरी में उनके बच्चे भी बँधे रहते हैं और वे काम करते रहते हैं। हरे-भरे बागानों में युवतियाँ बोकु पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ती हैं। बच्चे भी अपनी माँ के साथ काम करते हैं। यहाँ जीवन बेहद कठिन है पर यहाँ के लोगों ने इन कठिनाईयों के बावजूद भी शहर के हर पल को खूबसूरत बना दिया है। इसलिए लेखिका ने इसे ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ कहा है।

प्रश्न 3 – कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?

उत्तर:- सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ शांति व अहिंसा की प्रतीक हैं, इन पर मंत्र लिखे होते हैं। यदि किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा की शांति के लिए 108 श्वेत पताकाएँ फहराई जाती हैं। कई बार किसी नए कार्य के आरंभ के अवसर पर रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं। इसलिए ये पताकाएँ, शोक व नए कार्य के शुभांरभ की ओर संकेत करती हैं।

प्रश्न 4 – जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी, लिखिए।

उत्तर:- १) नार्गे के अनुसार सिक्किम के रास्तों में हिमालय की गहनतम घाटियाँ और फूलों से लदी वादियाँ मिलेंगी।

२) घाटियों का सौंदर्य देखते ही बनता हैं। नार्गे ने बताया कि वहाँ की खूबसूरती की तुलना स्विट्ज़रलैंड की खूबसूरती से की जा सकती है।

३) नार्गे के अनुसार पहाड़ी रास्तों पर फहराई गई पताकाएँ किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु व नए कार्य की शुरूआत का प्रतीक हैं। इनका रंग श्वेत व रंग-बिरंगा होता है।

४) सिक्किम में घूमते चक्र भारत के अन्य स्थानों व्याप्त आस्था, विश्वास, अंधविश्वास,पाप-पुण्य की अवधारणाओं की तरह ही हैं।

५) वहाँ की युवतियाँ बोकु नाम का सिक्किम का परिधान डालती हैं। जिसमें उनके सौंदर्य की छटा निराली होती है। वहाँ के घर, घाटियों में ताश के पत्तों की तरह बिखरे होते हैं।

६) वहां के लोग मेहनतकश होते है, उनका जीवन काफी मुश्किलों से भरा है।

७) स्त्रियाँ व बच्चे सब काम करते हैं। स्त्रियाँ स्वेटर बुनती हैं, घर सँभालती हैं, खेती करती हैं, पत्थर तोड़-तोड़ कर सड़कें बनाती हैं। चाय की पत्तियाँ चुनने बाग़ में जाती हैं। बच्चे पानी भरते हैं और जानवर चराते हैं।

८) बच्चों को बहुत ऊँचाई पर पढ़ाई के लिए जाना पड़ता है क्योंकि दूर-दूर तक कोई स्कूल नहीं है। इन सब के विषय में नार्गे लेखिका को बताता चला गया।




प्रश्न 5 – लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी ?

उत्तर:- लेखिका सिक्किम में घूमती हुई कवी-लोंग स्टॉक नाम की जगह पर गई। लोंग स्टॉक के घूमते चक्र के बारे में जितेन ने बताया कि यह धर्म चक्र है, इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। मैदानी क्षेत्र में गंगा के विषय में ऐसी ही धारणा है। लेखिका को लगा कि चाहे मैदान हो या पहाड़, तमाम वैज्ञानिक प्रगतियों के बावजूद इस देश की आत्मा एक जैसी है। यहाँ लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, पाप-पुण्य की अवधारणाएँ और कल्पनाएँ एक जैसी हैं। यही विश्वास पूरे भारत को एक ही सूत्र में बाँध देता है।


प्रश्न 6 – जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं?

उत्तर:- नार्गे एक कुशल गाइड था। वह अपने पेशे के प्रति पूरा समर्पित था। उसे सिक्किम के हर कोने के विषय में भरपूर जानकारी प्राप्त थी इसलिए वह एक अच्छा गाइड था। एक कुशल गाइड में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है –

१) एक गाइड अपने देश व इलाके के कोने-कोने से भली भाँति परिचित होता है, अर्थात् उसे सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।

२) उसे वहाँ की भौगोलिक स्थिति, जलवायु व इतिहास की सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।

३) एक कुशल गाइड को चाहिए कि वो अपने भ्रमणकर्ता के हर प्रश्न के उत्तर देने में सक्षम हो।

४) एक कुशल गाइड को अपने प्रति विश्वसनीयता अपने भ्रमणकर्ता को दिलानी आवश्यक है, तभी वह एक आत्मीय रिश्ता कायम कर अपने कार्य को कर सकता है।

५) गाइड को कुशल व बुद्धिमान होना आवश्यक है ताकि समय पड़ने पर वह विषम परिस्थितियों का सामना अपनी कुशलता व बुद्धिमानी से कर सके व अपने भ्रमणकर्ता की सुरक्षा कर सके।

६) एक कुशल गाइड की वाणी प्रभावशाली होनीआवश्यक है इससे पूरी यात्रा प्रभावशाली बनती है और भ्रमणकर्ता की यात्रा में रूचि भी बनी रहती है।

७) वह यात्रियों को रास्ते में आने वाले दर्शनीय स्थलों की जानकारी देता रहे।

८) वहाँ के जन-जीवन की दिनचर्या से अवगत कराए।

९) रास्ते में आए प्रत्येक दृश्य से पर्यटकों को अवगत कराए।


प्रश्न 7 – इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर:- इस यात्रा वृतांत में लेखिका ने हिमालय के पल-पल परिवर्तित होते रुप को देखा। ज्यों-ज्यों वह ऊँचाई पर चढ़ती गई हिमालय विशाल से विशालतर होता चला गया ,हिमालय कहीं चटक हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े हुए, तो कहीं हल्का पीलापन लिए हुए प्रतीत हुआ। चारों तरफ़ हिमालय के गहनतम वादियाँ और फूलों से लदी घाटियाँ थी। कहीं पर्वत प्लास्टर उखड़ी दीवार की तरह पथरीला दिखाई दिया और देखते-ही-देखते सब कुछ समाप्त हो गया मानो किसी ने जादू की छडी घूमा दी हो। कभी बादलों की मोटी चादर में,सब कुछ बादलमय दिखाई देता तो कभी कुछ और। कटाओ से आगे बढ़ने पर पूरी तरह बर्फ से ढके पहाड़ दिख रहे थे। चारों तरफ दूध की धार की तरह दिखने वाले जलप्रपात थे तो वहीं नीचे चाँदी की तरह कौंध मारती तिस्ता नदी बह रही थी, जिसने लेखिका के हृदय को आनन्द से भर दिया। स्वयं को इस पवित्र वातावरण में पाकर वह भावविभोर हो गई जिसने उनके हृदय को काव्यमय बना दिया।

प्रश्न 8 – प्रकृति उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?

उत्तर:- हिमालय का स्वरुप पल-पल बदलता है। प्रकृति इतनी मोहक है कि लेखिका किसी बुत-सी माया और छाया के खेल को देखती रह जाती है। इस वातावरण में उसको अद्भुत शान्ति प्राप्त हो रही थी। इन अद्भुत व अनूठे नज़ारों ने लेखिका को पलभर में ही जीवन की शक्ति का एहसास करा दिया। उसे ऐसा लगने लगा जैसे वह देश व काल की सरहदों से दूर,बहती धारा बनकर बह रही हो और उसके मन का सारा मैल और वासनाएँ इस निर्मल धारा में बह कर नष्ट हो गई हो। प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरुप को देखकर लेखिका को लगा कि इस सारे परिदृश्य को वह अपने अंदर समेट ले। उसे ऐसा अनुभव होने लगा वह चिरकाल तक इसी तरह बहते हए असीम आत्मीय सख का अनुभव करती रहे।

प्रश्न 9 – प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए ?

उत्तर:- लेखिका हिमालय यात्रा के दौरान प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनन्द में डूबी हुई थी ,अकस्मात् वहाँ के जनजीवन ने उसे झकझोर दिया। वहाँ कुछ पहाड़ी औरतें जो मार्ग बनाने के लिए पत्थरों पर बैठकर पत्थर तोड़ रही थीं। वे पत्थर तोड़कर सँकरे रास्तों को चौड़ा कर रही थीं। उनके कोमल हाथों में कुदाल व हथौड़े से ठाठे (निशान) पड़ गए थे। कईयों की पीठ पर बच्चे भी बँधे हुए थे। इनको देखकर लेखिका को बहुत दुख हुआ। वह सोचने लगी की ये पहाड़ी औरतें अपने जान की परवाह न करते हुए सैलानियों के भ्रमण तथा मनोरंजन के लिए हिमालय की इन दुर्गम घाटियों में मार्ग बनाने का कार्य कर रही हैं। सात आठ साल के बच्चों को रोज़ तीन-साढ़े तीन किलोमीटर का सफ़र तय कर स्कूल पढ़ने जाना पड़ता है। यह देखकर लेखिका मन में सोचने लगी कि यहाँ के अलौकिक सौंदर्य के बीच भूख, मौत, दैन्य और जिजीविषा के बीच जंग जारी है।

प्रश्न 10 – सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।

उत्तर:- सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव कराने में सबसे बड़ा हाथ एक कुशल गाइड का होता है। जो अपनी जानकारी व अनुभव से सैलानियों को अवगत कराता है। कुशल गाइड इस बात का ध्यान रखता है कि भ्रमणकर्ता की रूचि पूरी यात्रा में बनी रहे ताकि भ्रमणकर्ता के भ्रमण करने का प्रयोजन सफल हो। अपने मित्रों व सहयात्रियों का साथ पाकर यात्रा और भी रोमांचकारी व आनन्दमयी बन जाती है। वहाँ के स्थानीय निवासियों व जन जीवन का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। उनके द्वारा ही इस छटा के सौंदर्य को बल मिलता है क्योंकि यदि ये ना हों तो वह स्थान नीरस व बेजान लगने लगता है तथा सरकारी लोग जो व्यवस्था करने में संलग्न होते हैं उनका भी महत्त्वपूर्ण योगदान होता हैं।





प्रश्न 11 – “कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।” इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?

उत्तर:- पत्थरों पर बैठकर श्रमिक महिलाएँ पत्थर तोड़ती हैं। उनके हाथों में कुदाल व हथौड़े होते हैं। कइयों की पीठ पर बँधी टोकरी में उनके बच्चे भी बँधे रहते हैं और वे काम करती रहती हैं। हरे-भरे बागानों ने चाय की पत्तियाँ तोड़ती हैं। बच्चे भी अपनी माँ के साथ काम करते हैं। इन्ही की भाँति आम जनता भी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के प्रयास में जीविका के रूप में देश और समाज के लिए बहुत कुछ करते हैं। सड़के, पहाड़ी मार्ग, नदियों, पुल आदि बनाना। खेतों में अन्न उपजाना, कपड़ा बुनना, खानों,कारखानों में कार्य करके अपनी सेवाओं से राष्ट्र को आर्थिक सदृढ़ता प्रदान करके उसकी रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाते हैं। हमारे देश की आम जनता जितना श्रम करती है, उसे उसका आधा भी प्राप्त नहीं होता परन्तु फिर भी वो असाध्य कार्य को अपना कर्तव्य समझ कर करते हैं। वो समाज का कल्याण करते हैं परन्तु बदले में उन्हें स्वयं नाममात्र का ही अंश प्राप्त होता है। देश की प्रगति का आधार यहीं आम जनता है जिसके प्रति सकारात्मक आत्मीय भावना भी नहीं होती। यदि ये आम जनता ना हो तो देश की प्रगति का पहिया रुक जाएगा।

प्रश्न 12 – आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।

उत्तर:- प्रकति के साथ खिलवाड़ करने के क्रम में आज की पीढी पहाडी स्थलों को अपना विहार स्थान बना रही है। इससे वहाँ गंदगी बढ़ रही है। पर्वत अपनी स्वभाविक सुंदरता खो रहे है।कारखानों से निकलने वाले जल में खतरनाक कैमिकल व रसायन होते हैं जिसे नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। साथ में घरों से निकला दूषित जल भी नदियों में ही जाता है। जिसके कारण हमारी नदियाँ लगातार दूषित हो रही हैं। वनों की अन्धाधुध कटाई से मृदा का कटाव होने लगा है जो बाढ़ को आमंत्रित करता है। दूसरे अधिक पेड़ों की कटाई ने वातावरण में कार्बनडाईआक्साइड की अधिकता बढ़ा दी है जिससे वायु प्रदूषित होती जा रही है। इसे रोकने में हमारी भूमिका इसप्रकार होनी चाहिए – १) हम सबको मिलकर अधिक से अधिक पेड़ लगाना चाहिए। २) पेड़ों को काटने से रोकने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए ताकि वातावरण की शुद्धता बनी रहे। ३) हमें नदियों की निर्मलता व स्वच्छता को बनाए रखने के लिए कारखानों से निकलने वाले दूषित जल को नदियों में डालने से रोकना चाहिए। ४) नदियों की स्वच्छता बनाए रखने के लिए, लोगों को जागरूक करने के लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन होना चाहिए।

प्रश्न 13 – प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है। प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आये हैं, लिखें।

उत्तर:- आज की पीढ़ी के द्वारा प्रकृति को प्रदूषित किया जा रहा है। प्रदूषण का मौसम पर असर साफ दिखाई देने लगा है। प्रदूषण के चलते जलवायु पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कहीं पर बारिश अतिरिक्त हो जाती है तो किसी स्थान पर अप्रत्याशित रूप से सूखा पड़ रहा है। गर्मी के मौसम में गर्मी की अधिकता देखते बनती है। कई बार तो पारा अपने सारे रिकार्ड को तोड़ चुका होता है। सर्दियों के समय में या तो कम सर्दी पड़ती है या कभी सर्दी का पता ही नहीं चलता। ये सब प्रदूषण के कारण ही हो रहा है। प्रदूषण के कारण वायुमण्डल में कार्बनडाईआक्साइड की अधिकता बढ़ गई है जिसके कारण वायु प्रदूषित होती जा रही है। इससे साँस की अनेक बीमारियाँ उत्पन्न होने लगी है। प्रदूषण के कारण पहाड़ी स्थानों का तापमान भी बढ़ गया है, जिससे स्नोफॉल कम हो गया। ध्वनि प्रदूषण से शांति भंग होती है। ध्वनि-प्रदूषण मानसिक अस्थिरता, बहरेपन तथा अनिंद्रा जैसे रोगों का कारण बन रहा है। जलप्रदूषण के कारण स्वच्छ जल पीने को नहीं मिल पा रहा है और पेट सम्बन्धी अनेक बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं।

प्रश्न 14 – ‘कटाओ’ पर किसी दूकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए।

उत्तर:- ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है क्योंकि अभी तक यह पर्यटक स्थल नहीं बना है। यदि वहाँ दुकानें होती तो वहाँ सैलानियों का अधिक आगमन शुरू हो जाता और वे जमा होकर खाते-पीते, गंदगी फैलाते तथा वहाँ पर वाहनों के अधिक प्रयोग से वायु में प्रदूषण बढ़ जाएगा। लेखिका को केवल यही स्थान मिला जहाँ पर वह स्नोफॉल देख पाई। इसका कारण यही था कि वहाँ प्रदूषण नहीं था। अतः ‘कटाओ ‘पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए एक प्रकार से वरदान ही है।

प्रश्न 15 – प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है ?

उत्तर:- प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था नायाब ढंग से की है। प्रकृति सर्दियों में बर्फ के रूप में जल संग्रह कर लेती है और जब गर्मियों में पानी के लिए जब त्राहि-त्राहि मचती है, तो उस समय यही बर्फ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बन कर नदियों को भर देती है। नदियों के रूप में बहती यह जलधारा अपने किनारे बसे नगर तथा गावों में जल-संसाधन के रूप में तथा नहरों के द्वारा एक विस्तृत क्षेत्र में सिंचाई करती हैं और अंत में सागर में जाकर मिल जाती हैं। सागर से फिर से वाष्प के रूप में जल-चक्र की शुरुआत होती है। सचमुच प्रकृति ने जल संचय की कितनी अद्भुत व्यवस्था की है।

प्रश्न 16 – देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?

उत्तर:- ‘साना साना हाथ जोडि’ पाठ में देश की सीमा पर तैनात फौजियों की चर्चा की गई है। वस्तुत: सैनिक अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह ईमानदारी, समर्पण तथा अनुशासन से करते है। सैनिक देश की सीमाओं की रक्षा के लिए कटिबध्द रहते है। देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी प्रकृति के प्रकोप को सहन करते हैं। हमारे सैनिकों (फौजी) भाईयों को उन बर्फ से भरी ठंड में ठिठुरना पड़ता है। जहाँ पर तापमान शून्य से भी नीचे गिर जाता है। वहाँ नसों में खून को जमा देने वाली ठंड होती है। वह वहाँ सीमा की रक्षा के लिए तैनात रहते हैं और हम आराम से अपने घरों पर बैठे रहते हैं। ये जवान हर पल कठिनाइयों से जूझते हैं और अपनी जान हथेली पर रखकर जीते हैं। हमें सदा उनकी सलामती की दुआ करनी चाहिए। उनके परिवारवालों के साथ हमेशा सहानुभूति, प्यार व सम्मान के साथ पेश आना चाहिए।



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