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CTET September 2015 Paper 1 Language II – Hindi With Solution

CTET September 2015 (Paper 1)

Language II – Hindi with Solution




Online Mock Test

Tayari Online Has Been Brought Online For You, Solved Question Paper Of CTET Language II – Hindi September 2015 (Paper 1). Tayari Online Has Prepared CTET September 2015 (Paper 1) Language II – Hindi As A Mock Test For You Which Will Help You To Check Your Level Of Preparation And Will Familiarize You With The Answer From CTET September 2015 Question Paper. This Paper Was Conducted By CBSE on September 2015. With This Paper, Candidates Can Easily Know The Level Of Questions. This Paper Consists Of 150 Questions. Candidates Preparing For CTET Exam Are Advised To Solve This Paper Which Is Given By This Mock Test, In Addition To Other Previous Years Question Papers Of CTET. The Link To Download Other Previous Year Papers Of CTET Is Given At The End Of This Article.



Instructions for mock test candidates

1- The test used to be of one and a half hours duration but now it is two and a half hours and consists of 150 questions. There is no negative marking. This test booklet consists of five parts, I, II, III, IV and V, containing 150 objective type questions, each containing 30 questions:

Part I: Child Development and Pedagogy (Q. 1 to Q. 30)

Part II: Mathematics (Q. 31 to Q. 60)

Part III: Environmental Studies (Q. 61 to Q. 90)

Part IV: Language I – (Hindi Hindi) (Q. 91 to Q. 120)

Part V: Language II – (Hindi / Hindi) (Q.121 to Q.150)

2- Take this mock test by taking a copy and pen for rough work.

3- Read the questions carefully, mark the correct answer and press the next button.

4- At the end of the mock test you will be shown your result, see the result in which your questions will be shown with answers, which will help you to evaluate you, look at your answer sheet and evaluate yourself.

5- If you want to download this question paper then at the end of this article you will get the question paper of CTET 2015 September (Paper 1), you can download it.




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Created on By Vishal Kumar

Central Teacher Eligibility Test-CTET

CTET September 2015 (Paper 1) Language II - हिंदी With Solution

Tayari Online Has Been Brought Online For You, Solved Question Paper Of Language II - हिंदी CTET September 2015 (Paper 1). Tayari Online Has Prepared Language II - हिंदी CTET September 2015 (Paper 1) As A Mock Test For You Which Will Help You To Check Your Level Of Preparation And Will Familiarize You With The Answer From CTET September 2015 (Paper 1) Question Paper. This Paper Was Conducted By CBSE on September 2015.

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भाषा - 2 हिंदी 

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

प्र्शन- गद्यांश के आधार पर कहा जा सकता है कि




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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

प्र्शन-

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

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साल के जिस माह से मुझे सबसे अधिक लगाव होता है, वह दिसम्बर ही है। इस महीने की कोमल धूप मुझे मोह लेती हैं, लेकिन तभी एहसास होता है कि यह साल भी बीतकर विगत हो जाएगा, ठीक उसी तरह, जैसे धरती मैया के आँचल मे न जाने कितनी सदियाँ, कितने बरस दुबक के छिपे बैठे हैं। फिर सोचता हूँ, तो लगता है कि हर किसी के जीवन के बनने में ऐसे ही न जाने कितने 12 महीने होंगे, इन्हीं महीनों के पल-पल को जोड़कर हम-आप सब अपने जीवन को सँवारते-बिगाड़ते हैं। किसानी करते हुए हमने पाया कि एक किसान चार-चार महीने में एक जीवन जीता है। शायद ही किसी पेशे में जीवन को इस तरह टुकड़ों में जिया जाता होगा। चार महीने में हम एक फसल उपजा लेते हैं और इस चार महीने के सुख-दुख को फसल काटते ही मानो भूल जाते हैं। हमने कभी बाबूजी के मुख से सुना था कि किसान ही केवल ऐसा जीव हैं, जो स्वार्थ को ताक पर रखकर जीता है। इसके पीछे उनका तर्क होता था कि फसल बोने के बाद किसान इस बात की परवाह नहीं करता है कि फल अच्छा होया या बुरा। वह सब कुछ मौसम के हवाले कर जीवन के अगले चरण की तैयारी में जुट जाता है। किसानी करते हुए जो एकसास हो रहा है, उसे लिखता जाता हूँ। इस आशा के साथ कि किसानी को कोई परित्यक्त भाव से न देखे। अन्तिम महीने में मेरे जैसे किसान मक्का, आलू और सरसों में डूबे पड़े हैं। इस आशा के साथ कि आने वाले नये साल में इन फसलों से नये जीवन को नये सलीके से सजाया-सँवारा जाएगा।

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साल के जिस माह से मुझे सबसे अधिक लगाव होता है, वह दिसम्बर ही है। इस महीने की कोमल धूप मुझे मोह लेती हैं, लेकिन तभी एहसास होता है कि यह साल भी बीतकर विगत हो जाएगा, ठीक उसी तरह, जैसे धरती मैया के आँचल मे न जाने कितनी सदियाँ, कितने बरस दुबक के छिपे बैठे हैं। फिर सोचता हूँ, तो लगता है कि हर किसी के जीवन के बनने में ऐसे ही न जाने कितने 12 महीने होंगे, इन्हीं महीनों के पल-पल को जोड़कर हम-आप सब अपने जीवन को सँवारते-बिगाड़ते हैं। किसानी करते हुए हमने पाया कि एक किसान चार-चार महीने में एक जीवन जीता है। शायद ही किसी पेशे में जीवन को इस तरह टुकड़ों में जिया जाता होगा। चार महीने में हम एक फसल उपजा लेते हैं और इस चार महीने के सुख-दुख को फसल काटते ही मानो भूल जाते हैं। हमने कभी बाबूजी के मुख से सुना था कि किसान ही केवल ऐसा जीव हैं, जो स्वार्थ को ताक पर रखकर जीता है। इसके पीछे उनका तर्क होता था कि फसल बोने के बाद किसान इस बात की परवाह नहीं करता है कि फल अच्छा होया या बुरा। वह सब कुछ मौसम के हवाले कर जीवन के अगले चरण की तैयारी में जुट जाता है। किसानी करते हुए जो एकसास हो रहा है, उसे लिखता जाता हूँ। इस आशा के साथ कि किसानी को कोई परित्यक्त भाव से न देखे। अन्तिम महीने में मेरे जैसे किसान मक्का, आलू और सरसों में डूबे पड़े हैं। इस आशा के साथ कि आने वाले नये साल में इन फसलों से नये जीवन को नये सलीके से सजाया-सँवारा जाएगा।

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साल के जिस माह से मुझे सबसे अधिक लगाव होता है, वह दिसम्बर ही है। इस महीने की कोमल धूप मुझे मोह लेती हैं, लेकिन तभी एहसास होता है कि यह साल भी बीतकर विगत हो जाएगा, ठीक उसी तरह, जैसे धरती मैया के आँचल मे न जाने कितनी सदियाँ, कितने बरस दुबक के छिपे बैठे हैं। फिर सोचता हूँ, तो लगता है कि हर किसी के जीवन के बनने में ऐसे ही न जाने कितने 12 महीने होंगे, इन्हीं महीनों के पल-पल को जोड़कर हम-आप सब अपने जीवन को सँवारते-बिगाड़ते हैं। किसानी करते हुए हमने पाया कि एक किसान चार-चार महीने में एक जीवन जीता है। शायद ही किसी पेशे में जीवन को इस तरह टुकड़ों में जिया जाता होगा। चार महीने में हम एक फसल उपजा लेते हैं और इस चार महीने के सुख-दुख को फसल काटते ही मानो भूल जाते हैं। हमने कभी बाबूजी के मुख से सुना था कि किसान ही केवल ऐसा जीव हैं, जो स्वार्थ को ताक पर रखकर जीता है। इसके पीछे उनका तर्क होता था कि फसल बोने के बाद किसान इस बात की परवाह नहीं करता है कि फल अच्छा होया या बुरा। वह सब कुछ मौसम के हवाले कर जीवन के अगले चरण की तैयारी में जुट जाता है। किसानी करते हुए जो एकसास हो रहा है, उसे लिखता जाता हूँ। इस आशा के साथ कि किसानी को कोई परित्यक्त भाव से न देखे। अन्तिम महीने में मेरे जैसे किसान मक्का, आलू और सरसों में डूबे पड़े हैं। इस आशा के साथ कि आने वाले नये साल में इन फसलों से नये जीवन को नये सलीके से सजाया-सँवारा जाएगा।

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साल के जिस माह से मुझे सबसे अधिक लगाव होता है, वह दिसम्बर ही है। इस महीने की कोमल धूप मुझे मोह लेती हैं, लेकिन तभी एहसास होता है कि यह साल भी बीतकर विगत हो जाएगा, ठीक उसी तरह, जैसे धरती मैया के आँचल मे न जाने कितनी सदियाँ, कितने बरस दुबक के छिपे बैठे हैं। फिर सोचता हूँ, तो लगता है कि हर किसी के जीवन के बनने में ऐसे ही न जाने कितने 12 महीने होंगे, इन्हीं महीनों के पल-पल को जोड़कर हम-आप सब अपने जीवन को सँवारते-बिगाड़ते हैं। किसानी करते हुए हमने पाया कि एक किसान चार-चार महीने में एक जीवन जीता है। शायद ही किसी पेशे में जीवन को इस तरह टुकड़ों में जिया जाता होगा। चार महीने में हम एक फसल उपजा लेते हैं और इस चार महीने के सुख-दुख को फसल काटते ही मानो भूल जाते हैं। हमने कभी बाबूजी के मुख से सुना था कि किसान ही केवल ऐसा जीव हैं, जो स्वार्थ को ताक पर रखकर जीता है। इसके पीछे उनका तर्क होता था कि फसल बोने के बाद किसान इस बात की परवाह नहीं करता है कि फल अच्छा होया या बुरा। वह सब कुछ मौसम के हवाले कर जीवन के अगले चरण की तैयारी में जुट जाता है। किसानी करते हुए जो एकसास हो रहा है, उसे लिखता जाता हूँ। इस आशा के साथ कि किसानी को कोई परित्यक्त भाव से न देखे। अन्तिम महीने में मेरे जैसे किसान मक्का, आलू और सरसों में डूबे पड़े हैं। इस आशा के साथ कि आने वाले नये साल में इन फसलों से नये जीवन को नये सलीके से सजाया-सँवारा जाएगा।

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साल के जिस माह से मुझे सबसे अधिक लगाव होता है, वह दिसम्बर ही है। इस महीने की कोमल धूप मुझे मोह लेती हैं, लेकिन तभी एहसास होता है कि यह साल भी बीतकर विगत हो जाएगा, ठीक उसी तरह, जैसे धरती मैया के आँचल मे न जाने कितनी सदियाँ, कितने बरस दुबक के छिपे बैठे हैं। फिर सोचता हूँ, तो लगता है कि हर किसी के जीवन के बनने में ऐसे ही न जाने कितने 12 महीने होंगे, इन्हीं महीनों के पल-पल को जोड़कर हम-आप सब अपने जीवन को सँवारते-बिगाड़ते हैं। किसानी करते हुए हमने पाया कि एक किसान चार-चार महीने में एक जीवन जीता है। शायद ही किसी पेशे में जीवन को इस तरह टुकड़ों में जिया जाता होगा। चार महीने में हम एक फसल उपजा लेते हैं और इस चार महीने के सुख-दुख को फसल काटते ही मानो भूल जाते हैं। हमने कभी बाबूजी के मुख से सुना था कि किसान ही केवल ऐसा जीव हैं, जो स्वार्थ को ताक पर रखकर जीता है। इसके पीछे उनका तर्क होता था कि फसल बोने के बाद किसान इस बात की परवाह नहीं करता है कि फल अच्छा होया या बुरा। वह सब कुछ मौसम के हवाले कर जीवन के अगले चरण की तैयारी में जुट जाता है। किसानी करते हुए जो एकसास हो रहा है, उसे लिखता जाता हूँ। इस आशा के साथ कि किसानी को कोई परित्यक्त भाव से न देखे। अन्तिम महीने में मेरे जैसे किसान मक्का, आलू और सरसों में डूबे पड़े हैं। इस आशा के साथ कि आने वाले नये साल में इन फसलों से नये जीवन को नये सलीके से सजाया-सँवारा जाएगा।

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साल के जिस माह से मुझे सबसे अधिक लगाव होता है, वह दिसम्बर ही है। इस महीने की कोमल धूप मुझे मोह लेती हैं, लेकिन तभी एहसास होता है कि यह साल भी बीतकर विगत हो जाएगा, ठीक उसी तरह, जैसे धरती मैया के आँचल मे न जाने कितनी सदियाँ, कितने बरस दुबक के छिपे बैठे हैं। फिर सोचता हूँ, तो लगता है कि हर किसी के जीवन के बनने में ऐसे ही न जाने कितने 12 महीने होंगे, इन्हीं महीनों के पल-पल को जोड़कर हम-आप सब अपने जीवन को सँवारते-बिगाड़ते हैं। किसानी करते हुए हमने पाया कि एक किसान चार-चार महीने में एक जीवन जीता है। शायद ही किसी पेशे में जीवन को इस तरह टुकड़ों में जिया जाता होगा। चार महीने में हम एक फसल उपजा लेते हैं और इस चार महीने के सुख-दुख को फसल काटते ही मानो भूल जाते हैं। हमने कभी बाबूजी के मुख से सुना था कि किसान ही केवल ऐसा जीव हैं, जो स्वार्थ को ताक पर रखकर जीता है। इसके पीछे उनका तर्क होता था कि फसल बोने के बाद किसान इस बात की परवाह नहीं करता है कि फल अच्छा होया या बुरा। वह सब कुछ मौसम के हवाले कर जीवन के अगले चरण की तैयारी में जुट जाता है। किसानी करते हुए जो एकसास हो रहा है, उसे लिखता जाता हूँ। इस आशा के साथ कि किसानी को कोई परित्यक्त भाव से न देखे। अन्तिम महीने में मेरे जैसे किसान मक्का, आलू और सरसों में डूबे पड़े हैं। इस आशा के साथ कि आने वाले नये साल में इन फसलों से नये जीवन को नये सलीके से सजाया-सँवारा जाएगा।

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Central Teacher Eligibility Test-CTET

CTET September 2015 (Paper 1) Hindi Medium Language II - हिंदी With Solution

Tayari Online Has Been Brought Online For You, Solved Question Paper Of Language II - हिंदी CTET September 2015 (Paper 1). Tayari Online Has Prepared Language II - हिंदी CTET September 2015 (Paper 1) As A Mock Test For You Which Will Help You To Check Your Level Of Preparation And Will Familiarize You With The Answer From CTET September 2015 (Paper 1) Question Paper. This Paper Was Conducted By CBSE on September 2015.

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भाषा - 2 हिंदी 

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

प्रश्न - गद्यांश के आधार पर कहा जा सकता है कि-




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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

प्रश्न -

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

प्रश्न -

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

प्रश्न -




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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

प्रश्न -

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

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क्यों? एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब देने का प्रयास हम माता-पिता हमेशा से करते आए हैं। यह अच्छी बात है कि बच्चे सवाल पूछते हैं। सीखने का इससे बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता। सभी बच्चों के पास सीखने के दो स्त्रोत होते हैं कल्पनाशीलता और उत्सुकता। माता-पिता के रूप में आप अपने बच्चे की कल्पनाशीलता व उत्सुकता को बढ़ावा देकर उसे सीखने के आनन्द से सराबोर कर सकते हैं। शिक्षण और सीखना महज स्कूल की चारदीवारी के भीतर सम्पन्न होने वाली रहस्यमय गतिविधियाँ नहीं हैं। वे तब भी होती है, जब माता-पिता और बच्चे बेहद आसान चीजों को साथ-साथ करते हैं। उदाहरण के लिए, धुलने वाले कपड़ों के ढेर से मोजों को उनके जोड़ों के हिसाब से छाँटकर गणित और विज्ञान की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं। साथ मिलकर खाना बना सकते हैं, क्योंकि खाना बनाने से गणित और विज्ञान के अलावा अच्छी सेहत की भी सीख मिलती हैं। एक-दूसरे को कहानियाँ सुना सकते हैं। कहानी सुनाना पढ़ने और लिखने का आधार है। उछल-कूद वाले खेलों से बच्चे गिनती सीखते हैं और जीवन-पर्यन्त अच्छी सेहत का पाठ भी पढ़ते हैं। बच्चों के साथ मिलकर कुछ करने से आप समझ जाएँगें कि सीखना मनोरंजक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप हैं।

प्रश्न -

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साल के जिस माह से मुझे सबसे अधिक लगाव होता है, वह दिसम्बर ही है। इस महीने की कोमल धूप मुझे मोह लेती हैं, लेकिन तभी एहसास होता है कि यह साल भी बीतकर विगत हो जाएगा, ठीक उसी तरह, जैसे धरती मैया के आँचल मे न जाने कितनी सदियाँ, कितने बरस दुबक के छिपे बैठे हैं। फिर सोचता हूँ, तो लगता है कि हर किसी के जीवन के बनने में ऐसे ही न जाने कितने 12 महीने होंगे, इन्हीं महीनों के पल-पल को जोड़कर हम-आप सब अपने जीवन को सँवारते-बिगाड़ते हैं। किसानी करते हुए हमने पाया कि एक किसान चार-चार महीने में एक जीवन जीता है। शायद ही किसी पेशे में जीवन को इस तरह टुकड़ों में जिया जाता होगा। चार महीने में हम एक फसल उपजा लेते हैं और इस चार महीने के सुख-दुख को फसल काटते ही मानो भूल जाते हैं। हमने कभी बाबूजी के मुख से सुना था कि किसान ही केवल ऐसा जीव हैं, जो स्वार्थ को ताक पर रखकर जीता है। इसके पीछे उनका तर्क होता था कि फसल बोने के बाद किसान इस बात की परवाह नहीं करता है कि फल अच्छा होया या बुरा। वह सब कुछ मौसम के हवाले कर जीवन के अगले चरण की तैयारी में जुट जाता है। किसानी करते हुए जो एकसास हो रहा है, उसे लिखता जाता हूँ। इस आशा के साथ कि किसानी को कोई परित्यक्त भाव से न देखे। अन्तिम महीने में मेरे जैसे किसान मक्का, आलू और सरसों में डूबे पड़े हैं। इस आशा के साथ कि आने वाले नये साल में इन फसलों से नये जीवन को नये सलीके से सजाया-सँवारा जाएगा।

 

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साल के जिस माह से मुझे सबसे अधिक लगाव होता है, वह दिसम्बर ही है। इस महीने की कोमल धूप मुझे मोह लेती हैं, लेकिन तभी एहसास होता है कि यह साल भी बीतकर विगत हो जाएगा, ठीक उसी तरह, जैसे धरती मैया के आँचल मे न जाने कितनी सदियाँ, कितने बरस दुबक के छिपे बैठे हैं। फिर सोचता हूँ, तो लगता है कि हर किसी के जीवन के बनने में ऐसे ही न जाने कितने 12 महीने होंगे, इन्हीं महीनों के पल-पल को जोड़कर हम-आप सब अपने जीवन को सँवारते-बिगाड़ते हैं। किसानी करते हुए हमने पाया कि एक किसान चार-चार महीने में एक जीवन जीता है। शायद ही किसी पेशे में जीवन को इस तरह टुकड़ों में जिया जाता होगा। चार महीने में हम एक फसल उपजा लेते हैं और इस चार महीने के सुख-दुख को फसल काटते ही मानो भूल जाते हैं। हमने कभी बाबूजी के मुख से सुना था कि किसान ही केवल ऐसा जीव हैं, जो स्वार्थ को ताक पर रखकर जीता है। इसके पीछे उनका तर्क होता था कि फसल बोने के बाद किसान इस बात की परवाह नहीं करता है कि फल अच्छा होया या बुरा। वह सब कुछ मौसम के हवाले कर जीवन के अगले चरण की तैयारी में जुट जाता है। किसानी करते हुए जो एकसास हो रहा है, उसे लिखता जाता हूँ। इस आशा के साथ कि किसानी को कोई परित्यक्त भाव से न देखे। अन्तिम महीने में मेरे जैसे किसान मक्का, आलू और सरसों में डूबे पड़े हैं। इस आशा के साथ कि आने वाले नये साल में इन फसलों से नये जीवन को नये सलीके से सजाया-सँवारा जाएगा।

 




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साल के जिस माह से मुझे सबसे अधिक लगाव होता है, वह दिसम्बर ही है। इस महीने की कोमल धूप मुझे मोह लेती हैं, लेकिन तभी एहसास होता है कि यह साल भी बीतकर विगत हो जाएगा, ठीक उसी तरह, जैसे धरती मैया के आँचल मे न जाने कितनी सदियाँ, कितने बरस दुबक के छिपे बैठे हैं। फिर सोचता हूँ, तो लगता है कि हर किसी के जीवन के बनने में ऐसे ही न जाने कितने 12 महीने होंगे, इन्हीं महीनों के पल-पल को जोड़कर हम-आप सब अपने जीवन को सँवारते-बिगाड़ते हैं। किसानी करते हुए हमने पाया कि एक किसान चार-चार महीने में एक जीवन जीता है। शायद ही किसी पेशे में जीवन को इस तरह टुकड़ों में जिया जाता होगा। चार महीने में हम एक फसल उपजा लेते हैं और इस चार महीने के सुख-दुख को फसल काटते ही मानो भूल जाते हैं। हमने कभी बाबूजी के मुख से सुना था कि किसान ही केवल ऐसा जीव हैं, जो स्वार्थ को ताक पर रखकर जीता है। इसके पीछे उनका तर्क होता था कि फसल बोने के बाद किसान इस बात की परवाह नहीं करता है कि फल अच्छा होया या बुरा। वह सब कुछ मौसम के हवाले कर जीवन के अगले चरण की तैयारी में जुट जाता है। किसानी करते हुए जो एकसास हो रहा है, उसे लिखता जाता हूँ। इस आशा के साथ कि किसानी को कोई परित्यक्त भाव से न देखे। अन्तिम महीने में मेरे जैसे किसान मक्का, आलू और सरसों में डूबे पड़े हैं। इस आशा के साथ कि आने वाले नये साल में इन फसलों से नये जीवन को नये सलीके से सजाया-सँवारा जाएगा।

 




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साल के जिस माह से मुझे सबसे अधिक लगाव होता है, वह दिसम्बर ही है। इस महीने की कोमल धूप मुझे मोह लेती हैं, लेकिन तभी एहसास होता है कि यह साल भी बीतकर विगत हो जाएगा, ठीक उसी तरह, जैसे धरती मैया के आँचल मे न जाने कितनी सदियाँ, कितने बरस दुबक के छिपे बैठे हैं। फिर सोचता हूँ, तो लगता है कि हर किसी के जीवन के बनने में ऐसे ही न जाने कितने 12 महीने होंगे, इन्हीं महीनों के पल-पल को जोड़कर हम-आप सब अपने जीवन को सँवारते-बिगाड़ते हैं। किसानी करते हुए हमने पाया कि एक किसान चार-चार महीने में एक जीवन जीता है। शायद ही किसी पेशे में जीवन को इस तरह टुकड़ों में जिया जाता होगा। चार महीने में हम एक फसल उपजा लेते हैं और इस चार महीने के सुख-दुख को फसल काटते ही मानो भूल जाते हैं। हमने कभी बाबूजी के मुख से सुना था कि किसान ही केवल ऐसा जीव हैं, जो स्वार्थ को ताक पर रखकर जीता है। इसके पीछे उनका तर्क होता था कि फसल बोने के बाद किसान इस बात की परवाह नहीं करता है कि फल अच्छा होया या बुरा। वह सब कुछ मौसम के हवाले कर जीवन के अगले चरण की तैयारी में जुट जाता है। किसानी करते हुए जो एकसास हो रहा है, उसे लिखता जाता हूँ। इस आशा के साथ कि किसानी को कोई परित्यक्त भाव से न देखे। अन्तिम महीने में मेरे जैसे किसान मक्का, आलू और सरसों में डूबे पड़े हैं। इस आशा के साथ कि आने वाले नये साल में इन फसलों से नये जीवन को नये सलीके से सजाया-सँवारा जाएगा।

 




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साल के जिस माह से मुझे सबसे अधिक लगाव होता है, वह दिसम्बर ही है। इस महीने की कोमल धूप मुझे मोह लेती हैं, लेकिन तभी एहसास होता है कि यह साल भी बीतकर विगत हो जाएगा, ठीक उसी तरह, जैसे धरती मैया के आँचल मे न जाने कितनी सदियाँ, कितने बरस दुबक के छिपे बैठे हैं। फिर सोचता हूँ, तो लगता है कि हर किसी के जीवन के बनने में ऐसे ही न जाने कितने 12 महीने होंगे, इन्हीं महीनों के पल-पल को जोड़कर हम-आप सब अपने जीवन को सँवारते-बिगाड़ते हैं। किसानी करते हुए हमने पाया कि एक किसान चार-चार महीने में एक जीवन जीता है। शायद ही किसी पेशे में जीवन को इस तरह टुकड़ों में जिया जाता होगा। चार महीने में हम एक फसल उपजा लेते हैं और इस चार महीने के सुख-दुख को फसल काटते ही मानो भूल जाते हैं। हमने कभी बाबूजी के मुख से सुना था कि किसान ही केवल ऐसा जीव हैं, जो स्वार्थ को ताक पर रखकर जीता है। इसके पीछे उनका तर्क होता था कि फसल बोने के बाद किसान इस बात की परवाह नहीं करता है कि फल अच्छा होया या बुरा। वह सब कुछ मौसम के हवाले कर जीवन के अगले चरण की तैयारी में जुट जाता है। किसानी करते हुए जो एकसास हो रहा है, उसे लिखता जाता हूँ। इस आशा के साथ कि किसानी को कोई परित्यक्त भाव से न देखे। अन्तिम महीने में मेरे जैसे किसान मक्का, आलू और सरसों में डूबे पड़े हैं। इस आशा के साथ कि आने वाले नये साल में इन फसलों से नये जीवन को नये सलीके से सजाया-सँवारा जाएगा।

 

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साल के जिस माह से मुझे सबसे अधिक लगाव होता है, वह दिसम्बर ही है। इस महीने की कोमल धूप मुझे मोह लेती हैं, लेकिन तभी एहसास होता है कि यह साल भी बीतकर विगत हो जाएगा, ठीक उसी तरह, जैसे धरती मैया के आँचल मे न जाने कितनी सदियाँ, कितने बरस दुबक के छिपे बैठे हैं। फिर सोचता हूँ, तो लगता है कि हर किसी के जीवन के बनने में ऐसे ही न जाने कितने 12 महीने होंगे, इन्हीं महीनों के पल-पल को जोड़कर हम-आप सब अपने जीवन को सँवारते-बिगाड़ते हैं। किसानी करते हुए हमने पाया कि एक किसान चार-चार महीने में एक जीवन जीता है। शायद ही किसी पेशे में जीवन को इस तरह टुकड़ों में जिया जाता होगा। चार महीने में हम एक फसल उपजा लेते हैं और इस चार महीने के सुख-दुख को फसल काटते ही मानो भूल जाते हैं। हमने कभी बाबूजी के मुख से सुना था कि किसान ही केवल ऐसा जीव हैं, जो स्वार्थ को ताक पर रखकर जीता है। इसके पीछे उनका तर्क होता था कि फसल बोने के बाद किसान इस बात की परवाह नहीं करता है कि फल अच्छा होया या बुरा। वह सब कुछ मौसम के हवाले कर जीवन के अगले चरण की तैयारी में जुट जाता है। किसानी करते हुए जो एकसास हो रहा है, उसे लिखता जाता हूँ। इस आशा के साथ कि किसानी को कोई परित्यक्त भाव से न देखे। अन्तिम महीने में मेरे जैसे किसान मक्का, आलू और सरसों में डूबे पड़े हैं। इस आशा के साथ कि आने वाले नये साल में इन फसलों से नये जीवन को नये सलीके से सजाया-सँवारा जाएगा।

 

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