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अध्याय 1 संसाधन एंव विकास Class 10th important Questions 2021




Social Science Class 10th CBSE important Questions 2021

Samajik Vigyan class 10 important

10th class sst in Hindi important Q & A

 सामाजिक विज्ञान class 10th important Questions 2021




कक्षा 10 समाजिक विज्ञान – कक्षा 10वीं के छात्र हमारे इस पेज से समाजिक विज्ञान के नोट्स प्राप्त कर सकते हैं। कक्षा 10 समाजिक विज्ञान के सभी भाग (राजनीति विज्ञान, भूगोल, इतिहास, अर्थशास्त्र) के नोट्स इस पेज पर नीचे दिया गया है। अगर आप परीक्षा में पूछे जानें वाले महत्त्वपूर्ण प्रश्न जानना चाहते हैं तो 10वीं सामाजिक विज्ञान के नोट्स डाउनलोड कर सकते हैं। नोट्स की सहायता से आप अपनी परीक्षा की तैयारी और अच्छे से कर सकते हैं। छात्र नोट्स में दिए महत्त्वपूर्ण प्रश्नों को हल कर सकते हैं। प्रश्नों को हल करने के बाद आप अपने उत्तरों की जांच भी आसानी से कर सकते हैं। सभी प्रश्नों के उत्तर भी नोट्स में दिये गए हैं। कक्षा 10वी के छात्रों को बता दें कि आप नोट्स और महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के साथ – साथ अभ्यास पत्र भी प्राप्त कर सकते हैं। छात्र रोज एक अभ्यास पत्र को हल करने की कोशिश करें। 

कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान के नोट्स, महत्त्वपूर्ण प्रश्न और अभ्यास पत्र

कक्षा 10 में पढा़ई करने वाले छात्रों को बता दें कि आप हमारे पेज से 10वीं सामाजिक विज्ञान के सभी विषयों के नोट्स प्राप्त कर सकते हैं। नोट्स का प्रयोग करके आप सभी विषयों की तैयारी आसानी से कर सकते हैं। नोट्स, महत्त्वपूर्ण प्रश्न और अभ्यास पत्र को हल करने के बाद छात्र सभी विषयों को गहराई से समझ सकते हैं। अगर आप नोट्स में दिए महत्त्वपूर्ण प्रश्न और अभ्यास पत्र को हल करने की तरीके के बारे में जानना चाहते हैं तो इस पेज को नीचे तक पढ़ सकते हैं।




 सामाजिक विज्ञान class 10th important Questions 2021

अध्याय 1 ( संसाधन एंव विकास )

प्र .1 नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय संसाधनों में अंतर बताइए और उदाहरण दीजिए । ( 2017 , 2014 )

Ans – प्राकृतिक संसाधन नवीकरणीय संसाधन व अनवीकरणीय संसाधनों में वर्गीकृत किये जा सकते हैं।
ऐसे संसाधन जो पुन: उत्पन्न होने या जल्दी से नवीकरण करने की क्षमता या सामथ्र्य रखते हैं। नवीकरणीय संसाधन कहलाते है। वे सूर्य, पवन ऊर्जा, पानी, मिट्टी, जंगल इत्यादि को शामिल करते हैं। कुछ नवीकरणीय संसाधन असावधानी पूर्वक प्रयोग करने के कारण नष्ट हो सकते हैं।
अनवीकरणीय संसाधन प्रकृति में सीमित मात्रा में है और उनके नवीकरण में हजारों वर्ष लग जाते है। उदाहरण के लिए, कोयला या पेट्रोलियम यदि पूर्ण रूप से बाहर निकाल लिये जाते है तो उनको उत्पन्न करने में लगभग दस लाख वर्ष लगते हैं।

प्र .2 भंडार एवं संचित कोष मे अंतर स्पष्ट कीजिए । ( 2014 , 2012 )

Ans –संभावी संसाधन – ऐसे व् जो किसी क्षेत्र विशेष में मौजूद होते है। जिसे भविष्य में उपयोग लाये जाने की संभावना रहती है। जिसका उपयोग अभी तक नहीं किया गया हो जैसे – हिमायल क्षेत्र का खनिज,राजस्थान और गुजरात क्षेत्र में पवन और सोर ऊर्जा की असीम संभावनाएं हैं।

संचित-कोष संसाधन – ऐसे संसाधन भंडार जिसे उपलब्ध तकनीक के आधार पर प्रयोग में लाया जा सकता है भविष्य की यह पूंजी है। नदी जल भविष्य में जल विधुत उत्पन्न करने में उपयुक्त हो सकते है। ऐसे व् वन में या बांधों में जल के रूप में संचित है।





प्र .3 एजेंडा 21 क्या है । इसके प्रमुख दो उददेश्य बताइए । ( 2016 )

Ans – सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण एवं विकास के मुद्दे पर केन्द्रित एक सम्मेलन ब्राजील के रियो डि जेनेरो में हुआ। इस सम्मेलन को पृथ्वी सम्मेलन के नाम से जाना जाता है । इसमें 178 देशों के प्रतिनिधियों, हजारों स्वयंसेवी संगठनों और अनेक बहुराष्ट्रीय निगमों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में ही विश्व राजनीति में पर्यावरण को एक ठोस स्वरूप मिला। इस अवसर पर एजेण्डा-21 पारित किया गया। सभी राष्ट्रों से निवेदन किया गया कि वह प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखें, पर्यावरण के प्रदूषण को रोके तथा सतत विकास का रास्ता अपनाएं।

प्र .4 संसाधनो का नियोजन क्यों आवश्यक है कोई तीन कारण दीजिए । ( 2012 )

Ans – परिभाषा : यह ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा संसाधको का सदउपयोग किया जाता हे।
संसाधन नियोजन की ज़रूरत :

1. ज्यादातर संसाधनों की आपूर्ति सीमित है।

2. देश में संसाधनों की उपलब्धता में बहुत अधिक विविधता है।

3. संसाधनों का अत्याधिक उपयोग पर्यावरण में प्रदूषण को बढ़ाता है।

4. संसाधनों का नियोजन आत्मनिर्भर होने के लिए ज़रूरी है।

5. देश का विकास संसाधनों के सदउपयोग से होता है।

आवश्यकता : संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए नियोजन एक सर्वमान्य रणनीति है। इसलिए भारत जैसे देश में जहाँ संसाधनों की उपलब्धता में बहुत अधिक विविधता है, यह और भी महत्वपूर्ण है। यहाँ ऐसे प्रदेश भी हैं जहाँ एक तरह के संसाधनों की प्रचंरता है, परंतु दूसरे तरह के संसाधनों की कमी हैं। कुछ ऐसे प्रदेश भी हैं जो संसाधनों की उपलब्धता के संदर्भ में आत्मनिर्भर हैं और कुछ ऐसे भी प्रदेश हैं जहाँ महत्वपूर्ण संसाधनों की अत्यधिक कमी है। इसलिए राष्ट्रीय, प्रांतीय, प्रादेशिक और स्थानीय स्तर पर संतुलित संसाधन नियोजन की आवश्यकता है।




प्र .5 सतत पोषणीय विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए । ( 2013 )

Ans – सतत पोषणीय विकास : यह आर्थिक विकास की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों तथा पर्यावरण में बिना किसी हानि के वर्तमान तथा भविष्य पीढ़ियो दोनों के जीवन की गुणवत्ता बनाए रखना है।
सतत पोषणीय विकास की विशेषताएँ :

1. प्राकृतिक संसाधनों के कार्य कुशल उपयोग : इसका अर्थ है कि प्राकृतिक संसाधन तथा पर्यावरण कार्य कुशल तरीके में उपयुक्त होगा जो आय में वृद्धि तथा रोजगार, निर्धनता के उन्मूलन, जीवन स्तर में सुधार आदि में उद्देश्य के रूप में प्राप्त होगा।

2. भविष्य में जीवन की गुणवत्ता में कोर्इ कटौती नहीं : सतत पोषणीय विकास का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों तथा पर्यावरण के उपयोग से वर्तमान जीवन शैली को बढ़ाना है इस तरह से भविष्य की पीढ़ियो के जीवन की गुणवत्ता नीचे नहीं गिरेगी।

3. प्रदूषण में कमी नहीं : यह उन गतिविधियों को कम करता है जिनमें उच्च जीवन शैली क्रम में बनी रहती है यह प्राकृतिक संसाधनों तथा पर्यावरण को हानिकारक सिद्ध करता है।

4. सीमा विकास नहीं करता : यह सीमित आर्थिक विकास का उद्देश्य नहीं है। इसका उद्देश्य है कि प्राकृतिक संसाधन तथा पर्यावरण इस प्रकार से उपयोग किया जाता है कि यह केवल वर्तमान बल्कि भविष्य के आर्थिक विकास की दर भी बनाए रखता है।

प्र .6 मृदा निर्माण मे सहायक किन्ही तीन प्रमुख कारको का वर्णन कीजिए । ( 2011 , 2012 )

Ans – जलवायु मृदा निर्माण का सबसे महत्त्वपूर्ण सक्रिय कारक है। मृदा के विकास में संलग्न विभिन्न जलवायवी तत्त्व हैं- वर्षा, वाष्पीकरण की बारंबारता व अवधि तथा आर्द्रता एवं तापक्रम।

1. मूल शैल की भाँति स्थलाकृति भी एक दूसरा निष्क्रिय नियंत्रक कारक है। तीव्र ढालों वाले क्षेत्र में मृदा छिछली तथा सपाट क्षेत्र में मृदा गहरी व मोटी होती है। निम्न ढाल वाली स्थलाकृतियों में जहाँ अपरदन मंद तथा जल का परिश्रवण अच्छा रहता है, मृदा निर्माण के लिये बहुत अनुकूल होता है।

2. जैविक क्रियाएँ मृदा एवं जैव पदार्थ, नमी धारण की क्षमता तथा नाइट्रोजन इत्यादि जोड़ने में सहायक होती हैं। मृत पौधे मृदा को सूक्ष्म विभाजित जैव पदार्थ ह्यूमस प्रदान करते हैं। बैक्टीरियल कार्य की गहनता ठंडी एवं गर्म जलवायु की मिट्टियों में अंतर को दर्शाती है।

3. मृदा निर्माण में समय एवं अन्य महत्त्वपूर्ण कारक है। मृदा निर्माण की विभिन्न प्रक्रियाओं में लगने वाले समय की अवधि मृदा की परिपक्वता एवं उसके पाश्विक (Profile) के विकास का निर्धारण करती है।




प्र .7 भू निम्नीकरण क्या है । इसके प्रमुख कारण बताइए ।

Ansभूमि निम्नीकरण में जिम्मेदार तत्व :

1. खनन : यह भूमि निम्नीकरण का सबसे महत्वपूर्ण कारक है।

2. अति पशुचारण : गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और माराष्ट्र में अति पशुचारण भूमि निम्नीकरण का मुख्य कारण है।

3. जलाक्रांतता : पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अधिक सिंचाई भूमि निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है।

प्र .8 ” भू निम्नीकरण की समस्या को सुलझाने के कई तरीके है । ” किन्ही तीन का वर्णन कीजिए ।

Ans – भूमि निम्नीकरण और संरक्षण उपाय

भूमि निम्नीकरण : वह प्रक्रिया जिसमें भूमि खेती के अयोग्य बनती है।
भूमि निम्नीकरण में जिम्मेदार तत्व :

1. खनन : यह भूमि निम्नीकरण का सबसे महत्वपूर्ण कारक है।

(i) खनन के उपरांत खदानों वाले स्थानों को गहरी खाइयों और मलबे के साथ खुला छोड़ दिया जाता है। खनन के कारण झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उड़ीसा जैसे राज्यों में वनोन्मूलन भूमि निम्नीकरण का कारण बना है।

(ii) खनिज प्रक्रियाएँ जैसे सीमेंट उद्योग में चूना पत्थर को पीसना और मृदा बर्तन उद्योग में चूने (खड़िया मृदा) और सेलखड़ी के प्रायेग से बहुत अधिक मात्रा में वायुमंडल में धूल विसर्जित होती है।

2. अति पशुचारण : गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और माराष्ट्र में अति पशुचारण भूमि निम्नीकरण का मुख्य कारण है।

3. जलाक्रांतता : पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अधिक सिंचार्इ भूमि निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है। अति सिंचन से उत्पन्न जलाक्रांतता भी भूमि निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है जिससे मृदा में लवणीयता और क्षारीयता बढ़ जाती है।

4. औद्योगिकरण : पिछले कुछ वर्षो से देश के विभिन्न भागों में औद्योगिक जल निकास से बाहर आने वाला अपशिष्ट पदार्थ भूमि और जल प्रदूषण का मुख्य स्त्रोत है।

Solutions
1. वनारोपण।

2. चरागाहों का उचित प्रबंधन।

3. पशुचारण नियंत्राण।

4. रक्षक मेखला

5. रेतीले टीलों को काँटेदार झाड़ियाँ लगाकर स्थिर बनाना।

6. खनन नियंत्राण

7. औद्योगिक जल का परिष्करण के पश्चात् विसर्जन।

8. औद्योगिक अपशिष्ट का पूर्ण निरावेशन तथा नष्ट करना।

9. नमी संरक्षण तथा खरपतवार नियंत्राण।




प्र .9 काली मिट्टी भारत के किन भागों मे पाई जाती है इसकी चार प्रमुख विश्षताए बताइए ।

Ans – काली मिट्टी मुख्यतः महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, और मध्य प्रदेश में पाई जाती है और इस मिट्टी में मैग्नेशियम,चूना,लौह तत्व तथा कार्बनिक पदार्थों की अधिकता होती है। इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइड एंव जीवांश(Humus) की उपस्थिति के कारण होता है।

1. काली मिट्टी को लावा मिट्टी भी कहते हैं क्योंकि यह दक्कन ट्रैप के लावा चट्टानों की अपक्षय अर्थात टूटने फूटने से निर्मित हुई मिट्टी है।

2. दक्कन पठार के अलावा काली मिट्टी मालवा पठार की भी विशेषता है अर्थात मालवा पठार पर भी काली मिट्टी पाई जाती है।

3. काली मिट्टी का सर्वाधिक विस्तार महाराष्ट्र राज्य में है।

4.  काली मिट्टी की प्रमुख विशेषता यह है कि उसमें जल धारण करने की सर्वाधिक क्षमता होती है काली मिट्टी बहुत जल्दी चिपचिपी हो जाती है तथा सूखने पर इस में दरारें पड़ जाती हैं इसी गुण के कारण काली मिट्टी को स्वत जुताई वाली मिट्टी कहा जाता है।

प्र .10 खादर एवं बांगर में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।

Ans – बांगर – ये पुरानी जलोढ़ मिट्टि वाले भू-भाग है। इस प्रकार की जलोढ़ के लगतार एकत्रित होने पर छज्जे जैसी संरचना बन जाती है, जो बाढ़ प्रभावी मैदान के स्तर जितनी ऊपर उठ जाती है। कंकरो के संरक्षण के कारण यह जगह प्रायः अनुर्वर रहती है।

खादर – नवीनतम और बाढ़ मैदानों का युवा संग्रहण खादर कहलाता है।

प्र .11 लेटराइट मिट्टी की तीन विशेषताँए वताइए ।

Ans – 1. इस मिट्टी में लोहा, ऐल्युमिनियम और चूना अधिक होता है।

2. गहरी लेटेराइट मिट्टी में लोहा ऑक्साइड और पोटाश की मात्रा अधिक होती है। लौह आक्साइड की उपस्थिति के कारण प्रायः सभी लैटराइट मृदाएँ जंग के रंग की या लालापन लिए हुए होती है ।

3. लैटराइट मिट्टी,चाय, कहवा आदि फसलों के लिए उपयोगी है, क्योकि यह मिट्टी अम्लीय होती है।




प्र .12 मृदा संरक्षण के लिए उठाए जा रहे किन्ही तीन कदमो का वर्णन कीजिए । ( 2013 )

Ans – मृदा संरक्षण (Soil conservation) से तात्पर्य उन विधियों से है, जो मृदा को अपने स्थान से हटने से रोकते हैं। संसार के विभिन्न क्षेत्रों में मृदा अपरदन को रोकने के लिए भिन्न-भिन्न विधियाँ अपनाई गई हैं। मृदा संरक्षण की विधियाँ हैं – वनों की रक्षा, वृक्षारोपण, बंध बनाना, भूमि उद्धार, बाढ़ नियंत्रण, अत्यधिक चराई पर रोक, पट्टीदार व सीढ़ीदार कृषि, समोच्चरेखीय जुताई तथा शस्यार्वतन।

प्र .13 समाप्यता के आधार पर संसाधनो का वर्गीकराण कीजिए । ( K.V.S 2014 )

Ansसमाप्यता के आधार पर नवीकरण योग्य संसाधन – वे संसाधन जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीवृफत या पुनः उत्पन्न किया जा सकता है, उन्हें नवीकरण योग्य अथवा पुनः पूर्ति योग्य संसाधन कहा जाता है। उदाहरणार्थ, सौर तथा पवन ऊर्जा, जल, वन व वन्य जीवन। इन संसाधनों
को सतत् अथवा प्रवाह संसाधनों में विभाजित किया गया है ।

अनवीकरण योग्य संसाधन – इन संसाधनों का विकास एक लंबे भू-वैज्ञानिक अंतराल में होता है। खनिज और जीवाश्म ईंधन इस प्रकार के संसाधनों के उदाहरण हैं। इनके बनने में लाखों वर्ष लग जाते हैं। इनमें से कुछ संसाधन जैसे धातुएँ पुनः चक्रीय हैं और कुछ संसाधन जैसे – जीवाश्म ईंधन अचक्रीय हैं व एक बार के प्रयोग के साथ ही खत्म हो जाते हैं।




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