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CTET July 2013 Paper 1 Language II – Hindi With Solution

CTET July 2013 (Paper 1)

Language II – Hindi with Solution




Online Mock Test

Tayari Online Has Been Brought Online For You, Solved Question Paper Of CTET Language II – Hindi July 2013 (Paper 1). Tayari Online Has Prepared CTET July 2013 (Paper 1) Language II – Hindi As A Mock Test For You Which Will Help You To Check Your Level Of Preparation And Will Familiarize You With The Answer From CTET July 2013 Question Paper. This Paper Was Conducted By CBSE on July 2013. With This Paper, Candidates Can Easily Know The Level Of Questions. This Paper Consists Of 150 Questions. Candidates Preparing For CTET Exam Are Advised To Solve This Paper Which Is Given By This Mock Test, In Addition To Other Previous Years Question Papers Of CTET. The Link To Download Other Previous Year Papers Of CTET Is Given At The End Of This Article.



Instructions for mock test candidates

1- The test used to be of one and a half hours duration but now it is two and a half hours and consists of 150 questions. There is no negative marking. This test booklet consists of five parts, I, II, III, IV and V, containing 150 objective type questions, each containing 30 questions:

Part I: Child Development and Pedagogy (Q. 1 to Q. 30)

Part II: Mathematics (Q. 31 to Q. 60)

Part III: Environmental Studies (Q. 61 to Q. 90)

Part IV: Language I – (Hindi Hindi) (Q. 91 to Q. 120)

Part V: Language II – (Hindi / Hindi) (Q.121 to Q.150)

2- Take this mock test by taking a copy and pen for rough work.

3- Read the questions carefully, mark the correct answer and press the next button.

4- At the end of the mock test you will be shown your result, see the result in which your questions will be shown with answers, which will help you to evaluate you, look at your answer sheet and evaluate yourself.

5- If you want to download this question paper then at the end of this article you will get the question paper of CTET 2013 July (Paper 1), you can download it.




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Created on By Vishal Kumar

Central Teacher Eligibility Test-CTET

CTET July 2013 (Paper 1) Language II - हिंदी With Solution

Tayari Online Has Been Brought Online For You, Solved Question Paper Of Language II - हिंदी CTET July 2013 (Paper 1). Tayari Online Has Prepared Language II - हिंदी CTET July 2013 (Paper 1) As A Mock Test For You Which Will Help You To Check Your Level Of Preparation And Will Familiarize You With The Answer From CTET July 2013 (Paper 1) Question Paper. This Paper Was Conducted By CBSE on July 2013.

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भाग-V

भाषा-II हिन्दी

क्या आप जारी रखना चाहते है ?

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निर्देश: नीचे दिए गए गदयांश को पढ़कर सबसे उचित विकल्प का चयन कीजिए:

हमारे देश में आधुनिक शिक्षा नामक एक चीज प्रकट हई है। इसके नाम पर यत्रतत्र स्कूल और कॉलेज कुकुरमुत्तों की तरह सीर उठाकर खड़े हो गए है। इनका गठन इस तरह किया गया है कि इनका प्रकाश कॉलेज व्यवस्था के बाहर मुश्किल से पहुँचता है। सूरज की रोशनी चाँद से टकराकर जितनी निकलती है, इनसे उससे भी कम रोशनी निकलती है। एक परदेशी भाषा की मोटी दीवार इसे चारो और से घेरे हुए है। जब मैं अपनी मातृभाषा के जरिए शिक्षा के प्रसार के बारे में सोचता हूँ तो उस विचार से साहस क्षीण हो जाता है। घर की चहारदीवारी में बंद दुलहिन की तरह यह भयभीत रहती है। बरामदे तक ही इसकी स्वतंत्रता का साम्राज्य है: एक इंच आगे बढ़ी कि चूँघट निकल आता है। हमारी मातृभाषा का राज प्राथमिक शिक्षा तक सीमित है: दूसरे शब्दों में, यह केवल बच्चों की शिक्षा के लिए उपयुक्त है, मानी यह कि जिसे कोई दूसरी भाषा सीखने का अवसर नहीं मिला, हमारी जनता की उस विशाल भीड़ को शिक्षा के उनके अधिकार के प्रसंग में बच्चा ही समझ जाएगा। उन्हें कभी पूर्ण विकसित मनुष्य नही बनना है और तब भी हम प्रेमपूर्वक सोचते है कि स्वराज मिलने पर उन्हें सम्पूर्ण मनुष्य के अधिकार हासिल होंगे।

प्रश्न:  इन स्कूल-कॉलेजों में किस भाषा में पढ़ाई होती है? 

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निर्देश: नीचे दिए गए गदयांश को पढ़कर सबसे उचित विकल्प का चयन कीजिए:

हमारे देश में आधुनिक शिक्षा नामक एक चीज प्रकट हई है। इसके नाम पर यत्रतत्र स्कूल और कॉलेज कुकुरमुत्तों की तरह सीर उठाकर खड़े हो गए है। इनका गठन इस तरह किया गया है कि इनका प्रकाश कॉलेज व्यवस्था के बाहर मुश्किल से पहुँचता है। सूरज की रोशनी चाँद से टकराकर जितनी निकलती है, इनसे उससे भी कम रोशनी निकलती है। एक परदेशी भाषा की मोटी दीवार इसे चारो और से घेरे हुए है। जब मैं अपनी मातृभाषा के जरिए शिक्षा के प्रसार के बारे में सोचता हूँ तो उस विचार से साहस क्षीण हो जाता है। घर की चहारदीवारी में बंद दुलहिन की तरह यह भयभीत रहती है। बरामदे तक ही इसकी स्वतंत्रता का साम्राज्य है: एक इंच आगे बढ़ी कि चूँघट निकल आता है। हमारी मातृभाषा का राज प्राथमिक शिक्षा तक सीमित है: दूसरे शब्दों में, यह केवल बच्चों की शिक्षा के लिए उपयुक्त है, मानी यह कि जिसे कोई दूसरी भाषा सीखने का अवसर नहीं मिला, हमारी जनता की उस विशाल भीड़ को शिक्षा के उनके अधिकार के प्रसंग में बच्चा ही समझ जाएगा। उन्हें कभी पूर्ण विकसित मनुष्य नही बनना है और तब भी हम प्रेमपूर्वक सोचते है कि स्वराज मिलने पर उन्हें सम्पूर्ण मनुष्य के अधिकार हासिल होंगे।

प्रश्न: लेखक किस विचार में सहमत नहीं है?




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निर्देश: नीचे दिए गए गदयांश को पढ़कर सबसे उचित विकल्प का चयन कीजिए:

हमारे देश में आधुनिक शिक्षा नामक एक चीज प्रकट हई है। इसके नाम पर यत्रतत्र स्कूल और कॉलेज कुकुरमुत्तों की तरह सीर उठाकर खड़े हो गए है। इनका गठन इस तरह किया गया है कि इनका प्रकाश कॉलेज व्यवस्था के बाहर मुश्किल से पहुँचता है। सूरज की रोशनी चाँद से टकराकर जितनी निकलती है, इनसे उससे भी कम रोशनी निकलती है। एक परदेशी भाषा की मोटी दीवार इसे चारो और से घेरे हुए है। जब मैं अपनी मातृभाषा के जरिए शिक्षा के प्रसार के बारे में सोचता हूँ तो उस विचार से साहस क्षीण हो जाता है। घर की चहारदीवारी में बंद दुलहिन की तरह यह भयभीत रहती है। बरामदे तक ही इसकी स्वतंत्रता का साम्राज्य है: एक इंच आगे बढ़ी कि चूँघट निकल आता है। हमारी मातृभाषा का राज प्राथमिक शिक्षा तक सीमित है: दूसरे शब्दों में, यह केवल बच्चों की शिक्षा के लिए उपयुक्त है, मानी यह कि जिसे कोई दूसरी भाषा सीखने का अवसर नहीं मिला, हमारी जनता की उस विशाल भीड़ को शिक्षा के उनके अधिकार के प्रसंग में बच्चा ही समझ जाएगा। उन्हें कभी पूर्ण विकसित मनुष्य नही बनना है और तब भी हम प्रेमपूर्वक सोचते है कि स्वराज मिलने पर उन्हें सम्पूर्ण मनुष्य के अधिकार हासिल होंगे।

प्रश्न:लेखक ने मातृभाषा की तुलना किससे की है?

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निर्देश: नीचे दिए गए गदयांश को पढ़कर सबसे उचित विकल्प का चयन कीजिए:

हमारे देश में आधुनिक शिक्षा नामक एक चीज प्रकट हई है। इसके नाम पर यत्रतत्र स्कूल और कॉलेज कुकुरमुत्तों की तरह सीर उठाकर खड़े हो गए है। इनका गठन इस तरह किया गया है कि इनका प्रकाश कॉलेज व्यवस्था के बाहर मुश्किल से पहुँचता है। सूरज की रोशनी चाँद से टकराकर जितनी निकलती है, इनसे उससे भी कम रोशनी निकलती है। एक परदेशी भाषा की मोटी दीवार इसे चारो और से घेरे हुए है। जब मैं अपनी मातृभाषा के जरिए शिक्षा के प्रसार के बारे में सोचता हूँ तो उस विचार से साहस क्षीण हो जाता है। घर की चहारदीवारी में बंद दुलहिन की तरह यह भयभीत रहती है। बरामदे तक ही इसकी स्वतंत्रता का साम्राज्य है: एक इंच आगे बढ़ी कि चूँघट निकल आता है। हमारी मातृभाषा का राज प्राथमिक शिक्षा तक सीमित है: दूसरे शब्दों में, यह केवल बच्चों की शिक्षा के लिए उपयुक्त है, मानी यह कि जिसे कोई दूसरी भाषा सीखने का अवसर नहीं मिला, हमारी जनता की उस विशाल भीड़ को शिक्षा के उनके अधिकार के प्रसंग में बच्चा ही समझ जाएगा। उन्हें कभी पूर्ण विकसित मनुष्य नही बनना है और तब भी हम प्रेमपूर्वक सोचते है कि स्वराज मिलने पर उन्हें सम्पूर्ण मनुष्य के अधिकार हासिल होंगे।

प्रश्न:आधुनिक शिक्षा के नाम पर ऐसा क्या हुआ हो लेखक को अप्रिय है?

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निर्देश: नीचे दिए गए गदयांश को पढ़कर सबसे उचित विकल्प का चयन कीजिए:

हमारे देश में आधुनिक शिक्षा नामक एक चीज प्रकट हई है। इसके नाम पर यत्रतत्र स्कूल और कॉलेज कुकुरमुत्तों की तरह सीर उठाकर खड़े हो गए है। इनका गठन इस तरह किया गया है कि इनका प्रकाश कॉलेज व्यवस्था के बाहर मुश्किल से पहुँचता है। सूरज की रोशनी चाँद से टकराकर जितनी निकलती है, इनसे उससे भी कम रोशनी निकलती है। एक परदेशी भाषा की मोटी दीवार इसे चारो और से घेरे हुए है। जब मैं अपनी मातृभाषा के जरिए शिक्षा के प्रसार के बारे में सोचता हूँ तो उस विचार से साहस क्षीण हो जाता है। घर की चहारदीवारी में बंद दुलहिन की तरह यह भयभीत रहती है। बरामदे तक ही इसकी स्वतंत्रता का साम्राज्य है: एक इंच आगे बढ़ी कि चूँघट निकल आता है। हमारी मातृभाषा का राज प्राथमिक शिक्षा तक सीमित है: दूसरे शब्दों में, यह केवल बच्चों की शिक्षा के लिए उपयुक्त है, मानी यह कि जिसे कोई दूसरी भाषा सीखने का अवसर नहीं मिला, हमारी जनता की उस विशाल भीड़ को शिक्षा के उनके अधिकार के प्रसंग में बच्चा ही समझ जाएगा। उन्हें कभी पूर्ण विकसित मनुष्य नही बनना है और तब भी हम प्रेमपूर्वक सोचते है कि स्वराज मिलने पर उन्हें सम्पूर्ण मनुष्य के अधिकार हासिल होंगे।

प्रश्न: 'विचार' शब्द में 'इक' प्रत्यय लगने पर जो शब्द बनेगा, वह है




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हमारे देश में आधुनिक शिक्षा नामक एक चीज प्रकट हई है। इसके नाम पर यत्रतत्र स्कूल और कॉलेज कुकुरमुत्तों की तरह सीर उठाकर खड़े हो गए है। इनका गठन इस तरह किया गया है कि इनका प्रकाश कॉलेज व्यवस्था के बाहर मुश्किल से पहुँचता है। सूरज की रोशनी चाँद से टकराकर जितनी निकलती है, इनसे उससे भी कम रोशनी निकलती है। एक परदेशी भाषा की मोटी दीवार इसे चारो और से घेरे हुए है। जब मैं अपनी मातृभाषा के जरिए शिक्षा के प्रसार के बारे में सोचता हूँ तो उस विचार से साहस क्षीण हो जाता है। घर की चहारदीवारी में बंद दुलहिन की तरह यह भयभीत रहती है। बरामदे तक ही इसकी स्वतंत्रता का साम्राज्य है: एक इंच आगे बढ़ी कि चूँघट निकल आता है। हमारी मातृभाषा का राज प्राथमिक शिक्षा तक सीमित है: दूसरे शब्दों में, यह केवल बच्चों की शिक्षा के लिए उपयुक्त है, मानी यह कि जिसे कोई दूसरी भाषा सीखने का अवसर नहीं मिला, हमारी जनता की उस विशाल भीड़ को शिक्षा के उनके अधिकार के प्रसंग में बच्चा ही समझ जाएगा। उन्हें कभी पूर्ण विकसित मनुष्य नही बनना है और तब भी हम प्रेमपूर्वक सोचते है कि स्वराज मिलने पर उन्हें सम्पूर्ण मनुष्य के अधिकार हासिल होंगे।

प्रश्न:'साहस' शब्द है

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हमारे देश में आधुनिक शिक्षा नामक एक चीज प्रकट हई है। इसके नाम पर यत्रतत्र स्कूल और कॉलेज कुकुरमुत्तों की तरह सीर उठाकर खड़े हो गए है। इनका गठन इस तरह किया गया है कि इनका प्रकाश कॉलेज व्यवस्था के बाहर मुश्किल से पहुँचता है। सूरज की रोशनी चाँद से टकराकर जितनी निकलती है, इनसे उससे भी कम रोशनी निकलती है। एक परदेशी भाषा की मोटी दीवार इसे चारो और से घेरे हुए है। जब मैं अपनी मातृभाषा के जरिए शिक्षा के प्रसार के बारे में सोचता हूँ तो उस विचार से साहस क्षीण हो जाता है। घर की चहारदीवारी में बंद दुलहिन की तरह यह भयभीत रहती है। बरामदे तक ही इसकी स्वतंत्रता का साम्राज्य है: एक इंच आगे बढ़ी कि चूँघट निकल आता है। हमारी मातृभाषा का राज प्राथमिक शिक्षा तक सीमित है: दूसरे शब्दों में, यह केवल बच्चों की शिक्षा के लिए उपयुक्त है, मानी यह कि जिसे कोई दूसरी भाषा सीखने का अवसर नहीं मिला, हमारी जनता की उस विशाल भीड़ को शिक्षा के उनके अधिकार के प्रसंग में बच्चा ही समझ जाएगा। उन्हें कभी पूर्ण विकसित मनुष्य नही बनना है और तब भी हम प्रेमपूर्वक सोचते है कि स्वराज मिलने पर उन्हें सम्पूर्ण मनुष्य के अधिकार हासिल होंगे।

प्रश्न: 'घर की चाहरदीवारी में बंद दुलहिन कि तरह यह भयभीत रहती है।' वाक्य में रेखांकित अंश है ?

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हमारे देश में आधुनिक शिक्षा नामक एक चीज प्रकट हई है। इसके नाम पर यत्रतत्र स्कूल और कॉलेज कुकुरमुत्तों की तरह सीर उठाकर खड़े हो गए है। इनका गठन इस तरह किया गया है कि इनका प्रकाश कॉलेज व्यवस्था के बाहर मुश्किल से पहुँचता है। सूरज की रोशनी चाँद से टकराकर जितनी निकलती है, इनसे उससे भी कम रोशनी निकलती है। एक परदेशी भाषा की मोटी दीवार इसे चारो और से घेरे हुए है। जब मैं अपनी मातृभाषा के जरिए शिक्षा के प्रसार के बारे में सोचता हूँ तो उस विचार से साहस क्षीण हो जाता है। घर की चहारदीवारी में बंद दुलहिन की तरह यह भयभीत रहती है। बरामदे तक ही इसकी स्वतंत्रता का साम्राज्य है: एक इंच आगे बढ़ी कि चूँघट निकल आता है। हमारी मातृभाषा का राज प्राथमिक शिक्षा तक सीमित है: दूसरे शब्दों में, यह केवल बच्चों की शिक्षा के लिए उपयुक्त है, मानी यह कि जिसे कोई दूसरी भाषा सीखने का अवसर नहीं मिला, हमारी जनता की उस विशाल भीड़ को शिक्षा के उनके अधिकार के प्रसंग में बच्चा ही समझ जाएगा। उन्हें कभी पूर्ण विकसित मनुष्य नही बनना है और तब भी हम प्रेमपूर्वक सोचते है कि स्वराज मिलने पर उन्हें सम्पूर्ण मनुष्य के अधिकार हासिल होंगे।

प्रश्न: स्कूल और कॉलेजों का कुकुरमत्तों की तरह सिर उठाने से तात्पर्य है कि स्कूल और कॉलेज




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निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर सबसे सही विकल्प का चयन कीजिए:

राजनीतिक बहसों की गरमी में हम जो भी कहें, अपने राष्ट्रीय अभियान की अभिव्यक्ति में हम जितना भी जोर से चीखें, सक्रिय राष्ट्रीय सेवा के । प्रति हम अत्यंत उदासीन रहते है, क्योकि हमारा देश प्रकाश से हीन है। मानव स्वभाव में निहित कंजूसी के कारण जिन्हें हमने नीचा रख छोड़ा है, उनके प्रति अन्याय से हम बच ही नहीं सकते। समय-समय पर उनके नाम पर हम पैसा इकट्ठा करते है, लेकिन उनके हिस्से में शब्द ही आते है, पैसे तो अंततः हमारी पार्टी के ही लोगों के पास पहुँचता है। संक्षेप में, जिनके पास बुद्धि, शिक्षा, समृद्धि और सम्मान है, हमारे देश के उस अत्यंत छोटे हिस्से, पाँच प्रतिशत और आबादी के अन्य पंचानवे प्रतिशत के बीच की दूरी समंदर से भी अधिक चौड़ी है।

प्रश्न: लेखक के अनुसार हम किनके प्रति अन्याय करते है?

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निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर सबसे सही विकल्प का चयन कीजिए:

राजनीतिक बहसों की गरमी में हम जो भी कहें, अपने राष्ट्रीय अभियान की अभिव्यक्ति में हम जितना भी जोर से चीखें, सक्रिय राष्ट्रीय सेवा के । प्रति हम अत्यंत उदासीन रहते है, क्योकि हमारा देश प्रकाश से हीन है। मानव स्वभाव में निहित कंजूसी के कारण जिन्हें हमने नीचा रख छोड़ा है, उनके प्रति अन्याय से हम बच ही नहीं सकते। समय-समय पर उनके नाम पर हम पैसा इकट्ठा करते है, लेकिन उनके हिस्से में शब्द ही आते है, पैसे तो अंततः हमारी पार्टी के ही लोगों के पास पहुँचता है। संक्षेप में, जिनके पास बुद्धि, शिक्षा, समृद्धि और सम्मान है, हमारे देश के उस अत्यंत छोटे हिस्से, पाँच प्रतिशत और आबादी के अन्य पंचानवे प्रतिशत के बीच की दूरी समंदर से भी अधिक चौड़ी है।

प्रश्न:लेखक के अनुसार हम किनके नाम पर पैसा इकट्ठा करते है?




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निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर सबसे सही विकल्प का चयन कीजिए:

राजनीतिक बहसों की गरमी में हम जो भी कहें, अपने राष्ट्रीय अभियान की अभिव्यक्ति में हम जितना भी जोर से चीखें, सक्रिय राष्ट्रीय सेवा के । प्रति हम अत्यंत उदासीन रहते है, क्योकि हमारा देश प्रकाश से हीन है। मानव स्वभाव में निहित कंजूसी के कारण जिन्हें हमने नीचा रख छोड़ा है, उनके प्रति अन्याय से हम बच ही नहीं सकते। समय-समय पर उनके नाम पर हम पैसा इकट्ठा करते है, लेकिन उनके हिस्से में शब्द ही आते है, पैसे तो अंततः हमारी पार्टी के ही लोगों के पास पहुँचता है। संक्षेप में, जिनके पास बुद्धि, शिक्षा, समृद्धि और सम्मान है, हमारे देश के उस अत्यंत छोटे हिस्से, पाँच प्रतिशत और आबादी के अन्य पंचानवे प्रतिशत के बीच की दूरी समंदर से भी अधिक चौड़ी है।

प्रश्न:'लेकिन उनके हिस्से में शब्द ही आते है.......... 'वाक्य में रेखांकित शब्द किस अर्थ की और संकेत करता है?



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निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर सबसे सही विकल्प का चयन कीजिए:

राजनीतिक बहसों की गरमी में हम जो भी कहें, अपने राष्ट्रीय अभियान की अभिव्यक्ति में हम जितना भी जोर से चीखें, सक्रिय राष्ट्रीय सेवा के । प्रति हम अत्यंत उदासीन रहते है, क्योकि हमारा देश प्रकाश से हीन है। मानव स्वभाव में निहित कंजूसी के कारण जिन्हें हमने नीचा रख छोड़ा है, उनके प्रति अन्याय से हम बच ही नहीं सकते। समय-समय पर उनके नाम पर हम पैसा इकट्ठा करते है, लेकिन उनके हिस्से में शब्द ही आते है, पैसे तो अंततः हमारी पार्टी के ही लोगों के पास पहुँचता है। संक्षेप में, जिनके पास बुद्धि, शिक्षा, समृद्धि और सम्मान है, हमारे देश के उस अत्यंत छोटे हिस्से, पाँच प्रतिशत और आबादी के अन्य पंचानवे प्रतिशत के बीच की दूरी समंदर से भी अधिक चौड़ी है।

प्रश्न:किस शब्द में सवर रहित पंचम वर्ण के स्थान पर अनुस्वार (.) का प्रयोग किया जा सकता

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निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर सबसे सही विकल्प का चयन कीजिए:

राजनीतिक बहसों की गरमी में हम जो भी कहें, अपने राष्ट्रीय अभियान की अभिव्यक्ति में हम जितना भी जोर से चीखें, सक्रिय राष्ट्रीय सेवा के । प्रति हम अत्यंत उदासीन रहते है, क्योकि हमारा देश प्रकाश से हीन है। मानव स्वभाव में निहित कंजूसी के कारण जिन्हें हमने नीचा रख छोड़ा है, उनके प्रति अन्याय से हम बच ही नहीं सकते। समय-समय पर उनके नाम पर हम पैसा इकट्ठा करते है, लेकिन उनके हिस्से में शब्द ही आते है, पैसे तो अंततः हमारी पार्टी के ही लोगों के पास पहुँचता है। संक्षेप में, जिनके पास बुद्धि, शिक्षा, समृद्धि और सम्मान है, हमारे देश के उस अत्यंत छोटे हिस्से, पाँच प्रतिशत और आबादी के अन्य पंचानवे प्रतिशत के बीच की दूरी समंदर से भी अधिक चौड़ी है।

प्रश्न:'राष्ट्रीय' शब्द में कौन-सा प्रत्यय है?



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निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर सबसे सही विकल्प का चयन कीजिए:

राजनीतिक बहसों की गरमी में हम जो भी कहें, अपने राष्ट्रीय अभियान की अभिव्यक्ति में हम जितना भी जोर से चीखें, सक्रिय राष्ट्रीय सेवा के । प्रति हम अत्यंत उदासीन रहते है, क्योकि हमारा देश प्रकाश से हीन है। मानव स्वभाव में निहित कंजूसी के कारण जिन्हें हमने नीचा रख छोड़ा है, उनके प्रति अन्याय से हम बच ही नहीं सकते। समय-समय पर उनके नाम पर हम पैसा इकट्ठा करते है, लेकिन उनके हिस्से में शब्द ही आते है, पैसे तो अंततः हमारी पार्टी के ही लोगों के पास पहुँचता है। संक्षेप में, जिनके पास बुद्धि, शिक्षा, समृद्धि और सम्मान है, हमारे देश के उस अत्यंत छोटे हिस्से, पाँच प्रतिशत और आबादी के अन्य पंचानवे प्रतिशत के बीच की दूरी समंदर से भी अधिक चौड़ी है।

प्रश्न:'जितना भी जोर से चीखें' वाक्य में क्रिया है

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निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर सबसे सही विकल्प का चयन कीजिए:

राजनीतिक बहसों की गरमी में हम जो भी कहें, अपने राष्ट्रीय अभियान की अभिव्यक्ति में हम जितना भी जोर से चीखें, सक्रिय राष्ट्रीय सेवा के । प्रति हम अत्यंत उदासीन रहते है, क्योकि हमारा देश प्रकाश से हीन है। मानव स्वभाव में निहित कंजूसी के कारण जिन्हें हमने नीचा रख छोड़ा है, उनके प्रति अन्याय से हम बच ही नहीं सकते। समय-समय पर उनके नाम पर हम पैसा इकट्ठा करते है, लेकिन उनके हिस्से में शब्द ही आते है, पैसे तो अंततः हमारी पार्टी के ही लोगों के पास पहुँचता है। संक्षेप में, जिनके पास बुद्धि, शिक्षा, समृद्धि और सम्मान है, हमारे देश के उस अत्यंत छोटे हिस्से, पाँच प्रतिशत और आबादी के अन्य पंचानवे प्रतिशत के बीच की दूरी समंदर से भी अधिक चौड़ी है।

प्रश्न:गद्यांश के आधार पर कहा जा सकता है कि



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निर्देश: सबसे उचित विकल्प चुनिए:

प्रश्न :भाषा की पाठ्य-पुस्तक में सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष है

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 मौखिक कुशलता में शामिल है?

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भाषा के कौशल है ?



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बच्चे विद्यालय आने से पहले

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किस तरह के परिवेश में बच्चों का भाषा-विकास अपेक्षाकृत बेहतर होगा?

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सुनना कौशल में शामिल है।



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किस प्रकार का प्रशन प्राथमिक बच्चों की भाषायी क्षमता का आकलन करने में सर्वाधिक सक्षम है?

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बच्चों में पठन-संस्कृति का विकास करने के लिए अनिवार्य है ?

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प्राथमिक स्तर पर भाषिक रेखांकन और चित्रांकन



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सुहास पढ़ते समय कठिनाई का अनुभव करता है। वह से ग्रसित है।

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भाषा-शिक्षक को स्वयं अपनी भाषा-प्रयोग कि क्षमता को बढ़ाना चाहिए क्योंकि

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भाषा-अर्जन और भाषा-अधिगम में मुख्य अंतर है ?



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 एक बहुभाषिक कक्षा में बच्चों की गृहभाषा के प्रयोग को

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प्राथमिक स्तर पर भाषा-शिक्षण का उद्देश्य है ?

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भाषा एक औजार है जिसका उपयोग करते है ?



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